लद्दाख में रॉक वार्निश परतों में मैग्नेटोफॉसिल्स की खोज

शोधकर्ताओं ने लद्दाख में रॉक वार्निश परतों में मैग्नेटोफॉसिल्स (Magnetofossils) की खोज की हैं। मैग्नेटोफॉसिल्स मैग्नेटोटैक्टिक बैक्टीरिया द्वारा उत्पादित चुंबकीय कणों के जीवाश्म अवशेष हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में रॉक वार्निश के निर्माण में जैविक प्रक्रियाओं का सुझाव दिया गया है, जो यह दर्शाता है कि कठोर वातावरण में जीवन कैसे मौजूद हो सकता है, जो खगोल विज्ञान के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और साथ ही अंतरिक्ष में रहने योग्य वातावरण की पहचान करने के लिए भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों की योजना बनाने के लिए भी उपयोगी है।

लद्दाख, जिसे “भारत के ठंडे रेगिस्तान” के रूप में जाना जाता है, हाई अल्ट्रा वॉयलेट विकिरण, महत्वपूर्ण तापमान भिन्नता और सीमित जल उपलब्धता जैसी चरम जलवायु परिस्थितियों का अनुभव करता है, जो इसे मंगल ग्रह के अध्ययन के लिए एक उपयुक्त स्थलीय एनालॉग बनाता है।

बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज, लखनऊ (BSIP) के शोधकर्ता लद्दाख में देखे गए रॉक वार्निश और मंगल ग्रह पर देखे गए रॉक वार्निश के बीच समानता से प्रेरित थे।

मैग्नेटोफॉसिल्स मैग्नेटोटैक्टिक बैक्टीरिया द्वारा बनाए गए चुंबकीय कणों के जीवाश्म अवशेष हैं, जिन्हें मैग्नेटोबैक्टीरिया के रूप में भी जाना जाता है, और भूवैज्ञानिक रिकार्ड्स में संरक्षित पाए गए हैं।

मैग्नेटोटैक्टिक बैक्टीरिया ज़्यादातर प्रोकैरियोटिक ऑर्गनिज्म होते हैं जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ खुद को व्यवस्थित करते हैं। इन अनोखे ऑर्गनिज्म का वर्णन सबसे पहले 1963 में, इतालवी डॉक्टर साल्वाटोर बेलिनी द्वारा और फिर 1975 में वुड्स होल ओशनोग्राफ़िक इंस्टीट्यूशन, वुड्स होल, मैसाचुसेट्स के रिचर्ड ब्लेकमोर द्वारा किया गया था।

माना जाता है कि ये जीव चुंबकीय क्षेत्र का अनुसरण करके उन स्थानों तक पहुँचते हैं जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा सबसे अधिक होती है।

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