बिना विभाग का मंत्री होना संवैधानिक लोकाचार के सिद्धांत के अनुकूल नहीं है-मद्रास हाई कोर्ट
एक याचिका पर सुनवाई के बाद मद्रास उच्च न्यायालय ने इस विषय पर निर्णय लेने का फैसला तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पर छोड़ दिया कि जेल में बंद मंत्री वी सेंथिल बालाजी, जो वर्तमान में बिना किसी विभाग के राज्य कैबिनेट में मंत्री (minister without a portfolio) हैं, को अपना मंत्री पद बरकरार रखना चाहिए या नहीं।
हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि बिना किसी पोर्टफोलियो के मंत्री बने रहने से “कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है और यह अच्छाई, सुशासन और प्रशासन में शुचिता के संवैधानिक लोकाचार के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है।”
मुख्य न्यायाधीश एस.वी. गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति पी.डी. ऑडिकेसवालु ने मुख्यमंत्री से हिरासत में लिए गए मंत्री के कैबिनेट में बने रहने पर पूरी तरह से संवैधानिक और सार्वजनिक नैतिकता की चिंताओं के आधार पर निर्णय लेने के आग्रह किया, हालांकि न्यायिक हिरासत में होते हुए किसी व्यक्ति को, संविधान या किसी क़ानून के तहत, मंत्री के रूप में बने रहने से नहीं रोका गया है।
नेबाम रेबिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए हुए, बेंच ने कहा कि यदि राज्यपाल किसी मंत्री के संबंध में “अपनी प्रसाद पर्यन्त” वापस लेने का विकल्प चुनता है, तो उन्हें मुख्यमंत्री को संज्ञान में रखते हुए इस तरह के विवेक का प्रयोग करना चाहिए, न कि एकतरफा।
बिना विभाग के मंत्री
वैसे भारत में बिना विभाग के मंत्री का लंबा इतिहास रहा है। टी. टी. कृष्णामाचारी 1962 में जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में बिना किसी विभाग के मंत्री बने। बाद में उन्हें वित्त मंत्रालय दिया गया, इस पद पर वे 1966 तक रहे।
लाल बहादुर शास्त्री जनवरी-जून 1964 के दौरान नेहरू के मंत्रिमंडल में बिना पोर्टफोलियो के मंत्री थे, जब तक कि वह नेहरू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नहीं बन गए।
नेहरू के मंत्रिमंडल के भी साक्षी बने वी.के. कृष्ण मेनन को 1956 में बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में शामिल किया गया और बाद में 1957 में उन्हें रक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया गया।
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार में ममता बनर्जी को बिना पोर्टफोलियो के कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई क्योंकि उन्होंने कोयला मंत्रालय का पदभार अस्वीकार कर दिया था।
वर्ष 2016 में जे.जयललिता अस्पताल में भर्ती होने के बाद बिना किसी विभाग के मुख्यमंत्री बनी रहीं।