लेमनग्रास (Lemongrass) और इसके उपयोग
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा नियंत्रित प्रयोगशाला CIMAP ने कुछ साल पहले प्रायोगिक आधार पर नबरंगपुर (ओडिशा) में लेमनग्रास (Lemongrass) उगाना शुरू किया था। वर्तमान में, नबरंगपुर में 300 एकड़ भूमि पर लेमनग्रास उगाया जाता है।
लेमनग्रास (Cymbopogon citratus) एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु की नेटिव (मूल) घास की लगभग 45 प्रजातियों के वर्ग में एक लंबी, बारहमासी घास है। भारत लेमनग्रास का सबसे बड़ा उत्पादक है।
भारत में इसे पश्चिमी घाट, हिमालय पर्वत श्रेणी में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम की तलहटी में उगाया जाता है।
लेमनग्रास के तने लाल होते हैं और यह अपने अनुकूल क्षेत्र में 10 फीट तक लंबा सकता है। लेमनग्रास के निचले डंठल का उपयोग खाना पकाने में हर्बल के रूप में व्यापक रूप से किया जाता है।
लेमनग्रास से निकाले गए तेल का उपयोग कई अलग-अलग घरेलू उपयोगों के लिए किया जा सकता है। तेल की विशिष्ट साइट्रस गंध इसे सुगंधित साबुन, डिटर्जेंट और कीट प्रतिरोधी के निर्माण में उपयोगी बनाता है।
लेमनग्रास तेल का मुख्य उपयोग सिट्रल के स्रोत के रूप में होता है, जो इत्र, सौंदर्य प्रसाधन और पेय पदार्थों में एक लोकप्रिय घटक है। अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी संस्कृतियों में, चाय बनाने के लिए लेमनग्रास का उपयोग किया जाता है।
हालाँकि, जानवरों को लेमनग्रास पसंद नहीं है। खाते ही उल्टी हो जाती है। लेमनग्रास, सिट्रोनेला और वेटिवर घास जैसी सुगंधित पौधों की प्रजातियों की विशिष्ट गंध हाथियों को दूर भगाती है। यही कारण है कि ओडिशा में खेतों से हाथियों को दूर रखने के लिए लेमनग्रास उगाया जा रहा है।