विधि आयोग ने POCSO के तहत “एज ऑफ कंसेंट” को बरकरार रखने की सिफारिश
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले 22वें विधि आयोग ने सरकार को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत सहमति की मौजूदा आयु सीमा (age of consent) को बरकरार रखने की सिफारिश की है। भारत में सहमति की वर्तमान आयु सीमा 18 वर्ष है।
प्रमुख तथ्य
आयोग ने 27 सितंबर को कानून मंत्रालय को “यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु सीमा” शीर्षक से रिपोर्ट (संख्या 283) (Age of Consent under the Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) सौंपी।
पैनल ने कहा कि ऐज ऑफ कंसेंट कम करने से बाल विवाह और बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर सीधा और नकारात्मक असर पड़ेगा।
आयोग ने अदालतों को “किशोर प्रेम” से संबंधित मामलों में भी सावधानी बरतने की सलाह दी, जहां आपराधिक इरादे नहीं हो सकते हैं।
आयोग ने उन मामलों में सजा सुनाते समय न्यायिक विवेक (judicial discretion) की शुरूआत की सलाह दी, जिनमें यौन संबंधों में 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों की मौन सहमति शामिल हो।
रिपोर्ट में, पैनल ने कहा कि 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों की ओर से मौन स्वीकृति, हालांकि कानून के तहत सहमति नहीं है, से जुड़े मामलों में स्थिति को सुधारने के लिए POCSO अधिनियम, 2012 में कुछ संशोधनों की आवश्यकता होगी।
यह राय दी गई है कि ऐसे मामलों को उतनी गंभीरता से नहीं निपटाया जाना चाहिए जितना कि उन मामलों में जिन्हें आदर्श रूप से POCSO अधिनियम के तहत लाने की कल्पना की गई थी।
e-FIRs
27 सितंबर को, 22वें विधि आयोग ने एक अन्य रिपोर्ट (संख्या 282) प्रस्तुत की, जिसमें चरणबद्ध तरीके से ऑनलाइन प्राथमिकी (e-FIRs) दर्ज करने की सिफारिश की गयी है।
आयोग ने इस प्रक्रिया की शुरुआत उन अपराधों से करने की सिफारिश की जिनमें तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 में संशोधन करने की सिफारिश की।
आयोग ने कहा कि e-FIR, FIR दर्ज करने में होने वाली देरी की समस्या से निपटेगी और नागरिकों को रियल टाइम में अपराधों की रिपोर्ट करने की अनुमति देगी।