KAPP-3: काकरापार में देश की सबसे बड़ी स्वदेशी न्यूक्लियर रिएक्टर ने पूरी क्षमता से परिचालन शुरू किया

गुजरात में स्वदेशी रूप से विकसित भारत की सबसे बड़ी  परमाणु ऊर्जा संयंत्र यूनिट  ने पूरी क्षमता से परिचालन शुरू कर दिया है।  700 मेगावाट क्षमता की काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Kakrapar Nuclear Power Plant : KAPS) यूनिट-3 ने पूरी क्षमता से परिचालन शुरू कर दिया।

प्रमुख तथ्य

काकरापार यूनिट-3 मौजूदा परमाणु ऊर्जा संयंत्र का विस्तार है, जिसमें पहले से ही दो परिचालन इकाइयां,  KAPS-1 और  KAPS-2 थीं, प्रत्येक की क्षमता लगभग 220 मेगावाट (मेगावाट विद्युत) है। तीसरी इकाई पहली दो की तुलना में बड़ी और अधिक एडवांस्ड है।

एक अन्य यूनिट ( KAPS 4) का भी निर्माण किया गया है और यहां परिचालन मार्च 2024 तक शुरू होने की उम्मीद है।

देश में परमाणु संयंत्रों का संचालन करने वाले न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड या NPCIL ने कहा कि  KAPS-3 और 4 भारत के पहले  700 मेगावाट यूनिट आकार के स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए दबावयुक्त भारी पानी रिएक्टर (PHWRs) युग्म हैं और ये अधिक सुरक्षा सुविधाओं से युक्त हैं।  

PHWRs (प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर)

PHWRs (प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर) भारत के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों  के मुख्य आधार हैं। अब तक, स्वदेशी डिजाइन का सबसे बड़ा रिएक्टर 540 मेगावाट PHWR था, जिनमें से दो को तारापुर, महाराष्ट्र में तैनात किया गया है।

PHWR ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम और मॉडरेटर (मंदक) के रूप में भारी पानी का उपयोग करते हैं

सुरक्षा सुविधाओं के मामले में, PHWR तकनीक बेहतर माना जाता है।

PHWR डिज़ाइन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि प्रेशर वेसल प्रकार के रिएक्टरों में उपयोग किए जाने वाले बड़े प्रेशर वेसल के बजाय PHWR  में पतली दीवार वाली दबाव ट्यूबों का उपयोग किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लघु व्यास वाली दबाव ट्यूब्स में दबाव सीमाओं का वितरण हो जाता है और इस प्रकार प्रेशर वेसल टाइप के रिएक्टर की तुलना में दबाव सीमा के दुर्घटनावश टूटने के परिणाम की गंभीरता कम हो जाती है।

700 मेगावाट PHWR डिज़ाइन में ‘पैसिव डेके हीट रिमूवल सिस्टम’ के माध्यम से सुरक्षा बढ़ाई गयी है, जिसमें किसी भी ऑपरेटर कार्रवाई की आवश्यकता के बिना रिएक्टर कोर से क्षय ऊष्मा (रेडियोधर्मी क्षय के परिणामस्वरूप जारी गर्मी) को हटाने की क्षमता है। 2011 में जापान में हुई फुकुशिमा जैसी दुर्घटना की आशंका को खत्म करने के लिए जेनरेशन III+ संयंत्रों के लिए इसी तरह की तकनीक अपनाई गई है।

700 मेगावाट की PHWR इकाई, जैसा कि KAPP में है, किसी भी रिसाव को कम करने के लिए स्टील-लाइन वाली अवरोधक से सुसज्जित होने के साथ शीतलक (कूलैंट) की दुर्घटना की स्थिति में रोकथाम दबाव को कम करने के लिए एक कंटाइंमेंट स्प्रे प्रणाली से भी युक्त है।  

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