कुलसेकरपट्टिनम प्रक्षेपण केंद्र: क्यों है महत्वपूर्ण?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 फरवरी, 2024 को तमिलनाडु में कुलसेकरपट्टिनम स्पेसपोर्ट (Kulasekarapattinam spaceport ) की आधारशिला रखी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा कि SSLVs (लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान) लॉन्च करने के लिए इसरो की दूसरी उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का निर्माण दो साल के भीतर पूरा हो जाएगा।  

कई वजहों से कुलसेकरपट्टिनम से सैटेलाइट लॉन्च करना लाभकारी है। जब आंध्र प्रदेश में इसरो  के  श्रीहरिकोटा से किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में लॉन्च किया जाता है, तो रॉकेट पहले पूर्व दिशा की ओर जाता है, और फिर दक्षिण की ओर मुड़ जाता है। चूंकि श्रीलंका श्रीहरिकोटा के दक्षिण में स्थित है, इसलिए पड़ोसी देश के हवाई क्षेत्र से बचने के लिए यह मार्ग परिवर्तन किया गया है।

लेकिन कुलसेकरपट्टिनम से अंतरिक्ष केंद्र से उपग्रह प्रक्षेपण के लिए इस मोड़ की आवश्यकता नहीं है और रॉकेट अब सीधे दक्षिणी दिशा में जा सकते हैं।

इसके अलावा, कुलसेकरपट्टिनम श्रीहरिकोटा की तुलना में भूमध्य रेखा के अधिक निकट है। ये दोनों वजहें ईंधन बचाने में योगदान दे सकते हैं।

इसरो ने कम लागत पर हल्के वजन वाले उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए SSLV (लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान) डिजाइन किया है। इन SSLV का उपयोग 500 किलोग्राम से कम वजन वाले उपग्रहों को  पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च करने के लिए किया जा सकता है।

इन उपग्रहों को श्रीहरिकोटा से लॉन्च  करने में रॉकेट को अधिक दूरी तय करने के कारण अधिक खर्च करना पड़ता है। चूँकि लंबी दूरी तय करने के लिए अधिक ईंधन ले जाना पड़ता है, इससे रॉकेट की पेलोड क्षमता कम हो जाती है। इसरो वैज्ञानिकों के अनुसार इन कारणों से श्रीहरिकोटा से छोटे रॉकेट लॉन्च करना मुश्किल है।

तिरुनेलवेली जिले के महेंद्रगिरि में स्थित इसरो प्रोपल्शन रिसर्च कॉम्प्लेक्स कुलसेकरपट्टिनम स्पेसपोर्ट के अपेक्षाकृत करीब है। इससे भी फायदा है। बता दें कि कुलसेकरपट्टिनम को श्री मुथरम्मन मंदिर में दशहरा उत्सव के लिए बेहतर जाना जाता है।

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