महाराष्ट्र में शिव सेना विभाजन पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: मुख्य निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को जून 2022 में शिवसेना में विभाजन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर एक सर्वसम्मत फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका के बारे में कड़ी टिप्पणी की।

अदालत ने, हालांकि, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने से संबंधित कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से परहेज किया और पूर्ववर्ती सरकार को फिर से बहाल करने से मना कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियां

अयोग्यता के मुद्दे को कानून में स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार तय किया जाना चाहिए और संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत विधानसभाध्यक्ष इसके लिए उपयुक्त प्राधिकारी हैं, जो दल-बदल विरोधी कानून को निर्धारित करता है।

अयोग्यता के लिए किसी भी याचिका के लंबित होने की परवाह किए बिना एक विधायक को सदन की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है। मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना कार्य करने की राज्यपाल की शक्ति एक असाधारण प्रकृति की है, और इसे कानून की सीमाओं के भीतर सावधानी से प्रयोग किया जाना चाहिए।

राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और पार्टी के भीतर के विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि संसद ने एक विधायक दल के स्वतंत्र अस्तित्व को राजनीतिक दल के विधायकों के कार्यों की रक्षा प्रदान करने की सीमित सीमा तक मान्यता दी थी। उदाहरण के लिए, सदन में विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, या पार्टी के भीतर असहमति, दल-बदल विरोधी कानूनों के दायरे में नहीं आ सकती है।

कोर्ट ने कहा कि व्हिप राजनीतिक दल के निर्देशों को बताने के लिए विधायक दल के सदस्यों को संचार किया जाता है।

न्यायालय ने कहा कि व्हिप और सदन में पार्टी के नेता की नियुक्ति राजनीतिक दल (political party) करता है न कि विधायक दल (legislature party)। इसलिए, विधानसभा अध्यक्ष को केवल उस व्हिप और नेता को मान्यता देनी चाहिए जो राजनीतिक दल द्वारा विधिवत मान्यता प्राप्त हो।

पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने नबाम रेबिया मामले में अपने 2016 के फैसले से संबंधित कुछ मुद्दों को एक बड़ी पीठ को संदर्भित किया। नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि जब खुद स्पीकर को हटाने का नोटिस विधायकों द्वारा दी गयी हो तो वह किसी अन्य सदस्य की अयोग्यता की नोटिस पर निर्णय नहीं ले सकता।

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