झारखंड सरकार ने पेसा (PESA) लागू करने के लिए नियमों का मसौदा जारी किया
झारखंड सरकार ने 26 जुलाई को अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए 1996 में अधिनियमित पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम – या PESA – को लागू करने के लिए नियमों के मसौदा पर सुझाव आमंत्रित किये हैं।
गौरतलब है कि झारखंड में 24 में से 13 जिले 5वीं अनुसूची के अंतर्गत हैं। PESA अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय समुदायों के स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से खुद पर शासन करने के अधिकार को मान्यता देता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को भी मान्यता देता है।
पेसा अधिनियम (PESA)
PESA संविधान के भाग IX के प्रावधानों को पंचायतों से अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करने का प्रावधान करने वाला एक अधिनियम है।
पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों (Fifth Schedule Areas) में रहने वाले लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए और कुछ संशोधनों और अपवादों के साथ, पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX को पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों तक विस्तारित करने के लिए, संसद ने संविधान के अनुच्छेद 243M(4)(b) के संदर्भ में, “पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996” (PESA) बनाया है।
1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद, भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए आदिवासी स्व-शासन सुनिश्चित करने के लिए PESA 1996 अस्तित्व में आया। पेसा अधिनियम ने ग्राम सभा को पूर्ण शक्तियाँ प्रदान की हैं, जबकि राज्य विधायिका को पंचायतों और ग्राम सभाओं के समुचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए एक सलाहकार की भूमिका दी है।
पेसा अधिनियम ग्राम सभाओं को वन क्षेत्रों में सभी प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नियमों और विनियमों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है।
पेसा अधिनियम जनजातीय लोगों को उन वन क्षेत्रों से प्राकृतिक संसाधनों का लाभ उठाने के लिए अधिक संवैधानिक अधिकार देता है जहां वे रहते हैं।
पंचायती राज मंत्रालय द्वारा निरंतर आग्रह के बाद आठ राज्यों; आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने संबंधित राज्य पंचायती राज अधिनियमों के तहत अपने राज्य में पेसा नियमों को अधिसूचित किया है।
पांचवीं अनुसूची के अनुसचित क्षेत्र
पांचवीं अनुसूची क्षेत्र वाले राज्यों को इन क्षेत्रों के लिए पंचायत कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। PESA की धारा 2 के संदर्भ में, “अनुसूचित क्षेत्र” (Scheduled Areas) का अर्थ संविधान के अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्र है।
भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची {अनुच्छेद 244(1)} के पैराग्राफ 6(1) के अनुसार, ‘अनुसूचित क्षेत्र’ अभिव्यक्ति का अर्थ है ‘ऐसे क्षेत्र जिन्हें राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।’
संविधान की पांचवीं अनुसूची के पैराग्राफ 6(2) के प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रपति किसी भी समय उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श के बाद आदेश द्वारा किसी राज्य में किसी अनुसूचित क्षेत्र का दायरा बढ़ा सकते हैं; किसी भी राज्य या राज्यों के संबंध में, इस पैराग्राफ के तहत दिए गए किसी भी आदेश या आदेशों को रद्द कर सकते हैं।
वर्तमान में, 10 राज्यों;आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना में पांचवीं अनुसूची के क्षेत्र हैं।
पांचवीं अनुसूची उन अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है जहां आदिवासी समुदाय बहुमत में हैं।
जनजातीय सलाहकार परिषद (TAC) राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से निपटने के लिए पांचवीं अनुसूची के तहत गठित संवैधानिक निकाय हैं।
जनजाति सलाहकार परिषद (Tribes Advisory Councils: TAC)
भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुच्छेद 244(1) के तहत पैराग्राफ 4 के प्रावधानों के अनुसार, अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में जनजाति सलाहकार परिषद (Tribes Advisory Councils: TAC) की स्थापना की जाएगी।
राष्ट्रपति के निर्देश पर उन राज्यों में भी जनजाति सलाहकार परिषद गठित किया जा सकता है जहां अनुसूचित जनजातियाँ निवास तो करती हैं लेकिन वहां कोई अनुसूचित क्षेत्र नहीं हैं।
जनजाति सलाहकार परिषद में 20 से अधिक सदस्य नहीं होंगे, जिनमें से, यथासंभव, तीन-चौथाई राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होंगे।
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान जैसे अनुसूचित क्षेत्रों वाले 10 (दस) राज्यों में जनजाति सलाहकार परिषद (TAC) का गठन किया गया है।
इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और उत्तराखंड राज्यों में कोई अधिसूचित अनुसूचित क्षेत्र नहीं है, पर वहां भी जनजाति सलाहकार परिषद का गठन किया गया है। यह परिषद् राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे मामलों पर सलाह देती है जिन्हें राज्यपाल द्वारा सौंपा जाता है।