Chandrayaan-3: प्रक्षेपण, प्रमुख उद्देश्य, मॉड्यूल एवं उपकरण

भारत का तीसरा चंद्रमा मिशन, चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3), 14 जुलाई 2023 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM-3) रॉकेट पर सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया ।

इसे जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (GSLV-MK III) हेवी-लिफ्ट रॉकेट से लॉन्च किया गया।

मिशन के विक्रम लैंडर को 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने की योजना है।

प्रमुख उद्देश्य

पिछले प्रयास में, चंद्रयान -2, 2019 में विफल होने के बाद चंद्रमा की सतह पर रोबोट उपकरणों को सॉफ्ट-लैंडिंग कराने का यह भारत का दूसरा प्रयास है। अब तक, केवल तीन देश, अमेरिका, रूस और चीन, चंद्रमा पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट-लैंडिंग कर पाए हैं।

LVM-3 के उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद, अंतरिक्ष यान रॉकेट से अलग हो गया। यह एक एकीकृत मॉड्यूल था जिसमें प्रोपल्शन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और रोवर शामिल थे।

लैंडर एक निर्धारित चंद्र स्थल पर सॉफ्ट-लैंड कर सकता है और रोवर को तैनात कर सकता है। चंद्रयान-3 मिशन का लैंडिंग स्थल कमोबेश चंद्रयान-2 जैसा ही है: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर

रोवर घूमते हुए चंद्रमा की सतह का इन-सीटू रासायनिक अध्ययन करेगा। लैंडर में चंद्रमा की सतह और उपसतह का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक उपकरण भी हैं।

चंद्रयान-3 मिशन के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं:

-चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना,

-चंद्रमा पर रोवर को चलाना और

-चंद्रमा की सतह पर ऑन-साइट प्रयोगो करना।

चंद्रयान-3 के तीन मॉड्यूल

चंद्रयान-3 में स्वदेशी प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM), लैंडर मॉड्यूल (LM) और रोवर शामिल है। मिशन का उद्देश्य अन्य ग्रहों पर मिशनों के लिए आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन करना है।

प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर (रोवर युक्त) को पृथ्वी के चारों ओर EPO से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर एक गोलाकार कक्षा में ले जाएगा।

प्रोपल्शन मॉड्यूल में पृथ्वी से आने वाले स्पेक्ट्रल उत्सर्जन का अध्ययन करने के लिए ‘स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेटरी अर्थ ‘ (SHAPE) नामक उपकरण भी है।

प्रोपल्शन मॉड्यूल में चन्द्रमा की ऑर्बिट से पृथ्वी के स्पेक्ट्रल उत्सर्जन और ध्रुवीय मीट्रिक माप का अध्ययन करने के लिए ‘स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेटरी अर्थ ‘ (SHAPE) नामक उपकरण भी है।

लैंडर पेलोड: तापीय चालकता और तापमान को मापने के लिए चंद्रा सरफेस थर्मोफिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE); लैंडिंग स्थल के आसपास भूकंप गतिविधि को मापने के लिए इंस्ट्रूमेंट फॉर लूनर सिस्मिक एक्टिविटी (ILSA); प्लाज्मा घनत्व और इसकी विविधताओं का अनुमान लगाने के लिए लैंगमुइर प्रोब (LP)। नासा के एक पैसिव लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर ऐरे को चंद्र लेजर रेंजिंग अध्ययन के लिए समायोजित किया गया है।

रोवर पेलोड: लैंडिंग स्थल के आसपास मौलिक संरचना प्राप्त करने के लिए अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) और लेजर इंडुस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS)।

भारत के पिछले चंद्रमा मिशन

वर्ष 2019 में, चंद्रयान -2 ने दुनिया का ध्यान तब खींचा जब इसने विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक रखा। लेकिन मिशन को आंशिक असफलताओं का सामना करना पड़ा। लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पायी।

चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरने का प्रयास करते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

2008 का चंद्रयान-1 मिशन बेहद सफल रहा था और इसमें चंद्रमा पर पानी के अणुओं के प्रमाण मिले थे।

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