इसरो का आदित्य-L1सफलतापूर्वक L1 पॉइंट के हेलो ऑर्बिट में स्थापित हुआ

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आदित्य-L1 अंतरिक्ष यान को लैग्रेंजियन पॉइंट्स (L1) के चारों ओर एक हेलो ऑर्बिट में स्थापित किया है। हेलो ऑर्बिट L1 पर एक पेरिओडिकल, थ्री-डायमेंशनल ऑर्बिट है जिसमें सूर्य, पृथ्वी और एक अंतरिक्ष यान शामिल है।

भारत का पहला सौर मिशन आदित्य-L1, दो सितंबर, 2023 को लॉन्च होने के 127 दिन बाद 6 जनवरी 2024 को L1 पॉइंट पर पहुंच गया।

पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी की यात्रा के बाद अंतरिक्ष यान को फायरिंग मैनूवर के बाद L1 के चारों ओर एक हेलो ऑर्बिट में प्लेस किया गया। यह फायरिंग मैनूवर बेंगलुरु में इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC) में इसरो वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था।

आदित्य-L1 अंतरिक्ष यान की कक्षा एक पेरिओडिकल हेलो ऑर्बिट है जो लगभग 177.86 पृथ्वी दिवस (earth days) की कक्षीय अवधि (सूर्य को चक्कर लगाने में समय) के साथ निरंतर गतिशील सूर्य-पृथ्वी रेखा पर पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर स्थित है।

इस विशिष्ट हेलो ऑर्बिट को 5 वर्ष के मिशन जीवनकाल को सुनिश्चित करने के लिए चुना गया है।

आदित्य- L1 उपग्रह बिना किसी रुकावट या ग्रहण जैसी बाधाओं के सूर्य को लगातार ऑब्ज़र्व करता रहेगा और बिना किसी रुकावट के सूर्य की गतिविधियों को स्टडी करने के लाभ पहुंचाएंगा।

आदित्य- L1 इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक और पार्टिकल डिटेक्टर्स का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) की स्टडी करने के लिए सात पेलोड ले गया है।

L1 पॉइंट्स के विशेष सुविधाजनक पॉइंट्स का उपयोग करते हुए, आदित्य- L1 के चार पेलोड सीधे सूर्य को ऑब्जर्व करेंगे जबकि शेष तीन पेलोड खुद L1 के पार्टिकल्स और उसके आस पास के क्षेत्रों की स्टडी करेंगे।

लैग्रेंज पॉइंट्स (Lagrange Points) अंतरिक्ष में वे स्थान हैं जहां कोई वस्तु प्लेस किये जाने बाद स्थिर बनी रहती है या संतुलित रहती है। किसी दो पिंडों द्वारा इन्हें संतुलन प्रदान  किया जाता है।

सूर्य और पृथ्वी जैसी दो-पिंड प्रणाली के लिए अंतरिक्ष में इन बिंदुओं का उपयोग अंतरिक्ष यान द्वारा कम ईंधन खपत के साथ इन स्थानों पर बने रहने के लिए किया जा सकता है।

दो-निकाय गुरुत्वाकर्षण प्रणालियों के लिए, कुल पाँच लैग्रेंज बिंदु हैं, जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 के रूप में दर्शाया गया है।

L1 सूर्य-पृथ्वी रेखा के बीच स्थित है जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। पृथ्वी से L1 की दूरी पृथ्वी-सूर्य की दूरी का लगभग 1% है। हेलो ऑर्बिट L1 पर एक पेरिओडिकल, थ्री-डायमेंशनल ऑर्बिट है जिसमें सूर्य, पृथ्वी और एक अंतरिक्ष यान शामिल है।

पृथ्वी से L1 की दूरी पृथ्वी-सूर्य की दूरी का लगभग 1% है। यह ऑर्बिट सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है, इसलिए इसे सूर्य का चक्कर लगाने में पृथ्वी से कम समय लगता है, साथ ही ग्रहण रूपी व्यवधान भी नहीं आता क्योंकि यह पृथ्वी और सूर्य के बीच सूर्य की सीधी रेखा में है।

चूँकि पृथ्वी की तुलना में यह सूर्य से नजदीक है, इसलिए सौर गतिविधियों के प्रभाव या उसके पार्टिकल पृथ्वी से पहले यहां पहुंचते हैं।  L1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को बिना किसी ग्रहण/ग्रहण के सूर्य को लगातार देखने का प्रमुख लाभ होता है।

इससे सौर गतिविधियों को लगातार देखने का अधिक लाभ मिलेगा।

L1 पर वर्तमान में चार  अंतरिक्ष यान हैं। ये हैं: WIND, सोलर एंड  हेलिओस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी (SOHO), एडवांस्ड  कंपोजिशन एक्सप्लोरर (ACE) और डीप स्पेस क्लाइमेट वेधशाला (DSCOVER)।

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