भारत की तटरेखा पिछले पांच दशकों में लगभग 50% तक बढ़ गई है

गृह मंत्रालय (एमएचए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की तटरेखा पिछले पांच दशकों में लगभग 50% तक बढ़ गई है। 1970 में यह 7,516 किलोमीटर थी, जो 2023-24 तक बढ़कर 11,098 किलोमीटर हो गई। यह बड़ा बदलाव तटीय अवसादन (coastal accretion) और अपरदन (erosion) को मापने की नई पद्धतियों के कारण हुआ है, जिसने समुद्री परिदृश्य को काफी हद तक बदल दिया है। गुजरात, बंगाल और गोवा जैसे राज्यों में तटरेखा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।

गुजरात में सबसे अधिक विस्तार दर्ज किया गया, जहां इसकी तटरेखा 1970 के 1,214 किलोमीटर से लगभग दोगुनी होकर पिछले 53 वर्षों में 2,340 किलोमीटर हो गई। बंगाल में प्रतिशत के आधार पर सबसे अधिक वृद्धि हुई, जहां तटरेखा 157 किलोमीटर से बढ़कर 721 किलोमीटर हो गई, जो 357% की वृद्धि दर्शाती है। राष्ट्रीय स्तर पर, तटरेखा 1970 के आंकड़ों की तुलना में 47.6% बढ़ी है।

इस बड़े बदलाव का मुख्य कारण भारत की तटरेखा को मापने के लिए अपनाई गई नई कार्यप्रणाली है, जिसे राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक (National Maritime Security Coordinator) द्वारा परिभाषित किया गया है। पुरानी विधियों में जहां सीधी रेखाओं में दूरी मापी जाती थी, वहीं नई विधि में खाड़ी (bays), नदीमुख (estuaries), जलमार्ग (inlets) और अन्य भू-आकृतिक संरचनाओं (geomorphological formations) जैसे जटिल तटीय संरचनाओं को मापने को शामिल किया गया है। इस अद्यतन तकनीक ने तटरेखा की वास्तविक लंबाई को अधिक सटीक और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है।

तमिलनाडु में भी महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया, जहां इसकी तटरेखा 906 किलोमीटर से बढ़कर 1,068 किलोमीटर हो गई, और इसने आंध्र प्रदेश की 1,053 किलोमीटर लंबी तटरेखा को पीछे छोड़ दिया। दूसरी ओर, केरल ने सबसे कम वृद्धि दर्ज की, जिसमें इसकी तटरेखा मात्र 30 किलोमीटर या 5% बढ़ी।

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