भारत ने COP27 में अपनी दीर्घकालिक निम्न-उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LDES) प्रस्तुत की

भारत ने 14 नवंबर को जलवायु परिवर्तन पर पार्टियों के 27वें सम्मेलन (COP27) के दौरान के समक्ष अपनी ‘दीर्घकालिक निम्न-उत्सर्जन विकास रणनीति (Long-Term Low Emission Development Strategy: LT-LDES) प्रस्तुत की। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव, जो भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, ने LT-LDES का शुभारंभ किया। कॉप 27 का आयोजन 6-18 नवंबर, 2022 तक मिस्र के शर्म-अल-शेख में किया जा रहा है।

बता दें कि पेरिस समझौते के अनुच्छेद 4, पैरा 19 में कहा गया है, “सभी पक्षों को दीर्घावधि में ग्रीनहाउस गैस केनिम्न-उत्सर्जन पर आधारित विकास रणनीतियों को तैयार करने और संवाद करने का प्रयास करना चाहिए और अनुच्छेद 2 के आलोक में विभिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप अपनी “कॉमन, लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं” ( common but differentiated responsibilities and respective capabilities) को ध्यान में रखना चाहिए।

LT-LDES की मुख्य रणनीतियां

  • ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। जीवाश्म ईंधन से अन्य स्रोतों में ट्रांजीशन न्यायसंगत, सरल, सततऔर सर्व-समावेशी तरीके से किया जाएगा। 2021 में शुरू किए गए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन हब बनाना है। बिजली क्षेत्र के समग्र विकास के लिए हरित हाइड्रोजन उत्पादन का तेजी से विस्तार, देश में इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण क्षमता में वृद्धि और 2032 तक परमाणु क्षमता में तीन गुना वृद्धि कुछ अन्य लक्ष्य हैं, जिनकी परिकल्पना की गयी है।
  • जैव ईंधन के बढ़ते उपयोग, विशेष रूप से पेट्रोल में इथेनॉल की ब्लेंडिंग; इलेक्ट्रिक वाहन के उपयोग को बढ़ाने का अभियान और हरित हाइड्रोजन ईंधन के बढ़ते उपयोग से परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। भारत 2025 तक इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को अधिकतम करने, 20 प्रतिशत तक इथेनॉल की ब्लेंडिंगकरने एवं यात्री और माल ढुलाई के लिए सार्वजनिक परिवहन के साधनों में एक सशक्त बदलाव लाने की आकांक्षा रखता है।
  • शहरीकरण की प्रक्रिया हमारे वर्तमान अपेक्षाकृत कम शहरी आधार के कारण जारी रहेगी। भविष्य में सततऔर जलवायु सहनीय शहरी विकास निम्न द्वारा संचालित होंगे- स्मार्ट सिटी पहल; ऊर्जा और संसाधन दक्षता में वृद्धि तथा अनुकूलन को मुख्यधारा में लाने के लिए शहरों की एकीकृत योजना; प्रभावी ग्रीन बिल्डिंग कोड और अभिनव ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन में तेजी से विकास।
  • ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ के परिप्रेक्ष्य में भारत का औद्योगिक क्षेत्र एक मजबूत विकास पथ पर आगे बढ़ता रहेगा। इस क्षेत्र में निम्न-कार्बन उत्सर्जन वाले स्रोतों को अपनाने का प्रभाव- ऊर्जा सुरक्षा, ऊर्जा पहुंच और रोजगार पर नहीं पड़ना चाहिए। प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade : PAT) योजना ; राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, सभी प्रासंगिक प्रक्रियाओं और गतिविधियों में विद्युतीकरण के उच्च स्तर, भौतिक दक्षता को बढ़ाने और सर्कुलर अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए रीसाइक्लिंग एवं स्टील, सीमेंट, एल्युमिनियम और अन्य जैसे कठिन क्षेत्रों में अन्य विकल्पों की खोज आदि के माध्यम से ऊर्जा दक्षता में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • भारत का उच्च आर्थिक विकास के साथ-साथ पिछले तीन दशकों में वन और वृक्षों के आवरण को बढ़ाने का एक मजबूत रिकॉर्ड रहा है। भारत में वनाग्नि की घटनाएं वैश्विक स्तर से काफी नीचे है, जबकि देश में वन और वृक्षों का आवरण 2016 में कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन का 15 प्रतिशत अवशोषित करने वाला शुद्ध सिंक मौजूद है। भारत 2030 तक वन वृक्षों के आवरण द्वारा 2.5 से 3 बिलियन टन अतिरिक्त कार्बन अवशोषण की अपनी NDC प्रतिबद्धता को पूरा करने के मार्ग पर है।
  • निम्न कार्बन विकास मार्ग को अपनाने में नई प्रौद्योगिकियों, नई अवसंरचना और अन्य लेन-देन की लागतों में वृद्धि समेत कई अन्य घटकों की लागतें शामिल होंगी। हालांकि, विभिन्न अध्ययनों पर आधारित कई अलग-अलग अनुमान मौजूद हैं, लेकिन ये सभी आम तौर पर 2050 तक खरबों डॉलर की व्यय-सीमा में आते हैं। विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त का प्रावधान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और इसे UNFCCC के सिद्धांतों के अनुसार मुख्य रूप से सार्वजनिक स्रोतों से अनुदान और रियायती ऋण के रूप में काफी बढ़ाया जाना चाहिए, ताकि पैमाने, दायरे और गति को सुनिश्चित किया जा सके।
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