भारत का पहला हिमस्खलन निगरानी रडार सिक्किम में स्थापित किया गया
भारत में अपनी तरह का पहला हिमस्खलन निगरानी रडार (avalanche monitoring radar) उत्तरी सिक्किम में आर्मी एंड डिफेन्स जिओइंफोर्मेटिक्स एंड रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट ( DGRE) द्वारा स्थापित किया गया है।
इस रडार का उद्घाटन सुकना स्थित 33 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल तरुण कुमार आइच ने 20 सितंबर को 15,000 फीट की ऊंचाई पर किया।
रात में भी निगरानी करने में सक्षम यह राडार एक ऑल वेदर सॉल्यूशन है जो 2 वर्ग/किमी के क्षेत्र को कवर करता है। यह डिवाइस टारगेट पर बिखरे शार्ट माइक्रोवेव पल्सेस की एक सीरीज का उपयोग करता है। भारतीय सेना ने कहा कि यह अवलांचे पैदा करने वाले टारगेट स्लोप को स्थायी रूप से स्कैन कर सकता है और इसके मार्ग और आकार को ट्रैक कर सकता है।
हिमस्खलन निगरानी रडार
यह रडार आटोमेटिक कण्ट्रोल और वार्निंग उपायों को एक्टिवेट करने वाले अलार्म सिस्टम से भी जुड़ा हुआ है। घटना के चित्र और वीडियो विशेषज्ञों द्वारा भविष्य के विश्लेषण के लिए रिकॉर्ड किए जाते हैं।
यह अपने ट्रिगर के तीन सेकंड के भीतर हिमस्खलन का पता लगा सकता है और सैनिकों की जान बचाने और संपत्ति के नुकसान को कम करने में मदद करेगा।
रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) के तहत एक प्रयोगशाला DGRE द्वारा रडार को चालू किया गया। DGRE हिमालयी क्षेत्र में सेना द्वारा सामना किए जाने वाले हिमस्खलन के खतरों के पूर्वानुमान और मिटिगेशन के लिए उपाय करता है।
हिमस्खलन (avalanche)
हिमस्खलन (avalanche) बड़ी मात्रा में बर्फ का पहाड़ के नीचे तेजी से गति करना है।
आमतौर पर यह 30 से 45 डिग्री वाले ढलान पर घटित होती है। जब हिमस्खलन रुकता है, तो बर्फ कंक्रीट की तरह ठोस हो जाती है और लोग हटा नहीं पाते हैं।
हिमस्खलन में फंसे लोग दम घुटने, आघात या हाइपोथर्मिया से मर सकते हैं। हिमस्खलन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों के लिए एक अभिशाप है और उनमें से कई ऐसी घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं।