भारत में पहली बार हिमालयी गिद्ध की कैप्टिव ब्रीडिंग दर्ज की गयी है
शोधकर्ताओं ने असम राज्य चिड़ियाघर, गुवाहाटी में भारत में पहली बार हिमालयी गिद्ध/हिमालयन ग्रिफन (जिप्स हिमालयेंसिस) की कैप्टिव ब्रीडिंग कराने में सफलता प्राप्त की है। कैप्टिव ब्रीडिंग जानवरों को उनके प्राकृतिक परिवेश के बाहर फार्म, चिड़ियाघरों या अन्य कृत्रिम संरक्षण केंद्रों में प्रतिबंधित परिस्थितियों में प्रजनन करने की प्रक्रिया है।
प्रमुख तथ्य
हिमालयी गिद्ध को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की थ्रेटेनेड प्रजातियों की रेड लिस्ट में ‘नियर थ्रेटेनेड’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
हिमालयी गिद्ध प्रजाति भारतीय मैदानी इलाकों में दिखने वाली एक सामान्य शीतकालीन प्रवासी पक्षी है, और लेकिन इनके आश्रय उच्च हिमालयी क्षेत्र में हैं।
चिड़ियाघर में सफलतापूर्वक ब्रीडिंग किए गए हिमालयी गिद्धों को 2011-2012 में विभिन्न विषाक्तों और दुर्घटनाओं से बचाया गया था।
गुवाहाटी में इस प्रजाति की ब्रीडिंग एक कठिन काम था, क्योंकि प्रकृति में, यह प्रजाति बर्फ से ढके पहाड़ों में ब्रीडिंग करती है। लेकिन चूंकि इन पक्षियों को लंबे समय तक चिड़ियाघर में रखा गया था, इसलिए वे उष्णकटिबंधीय वातावरण के आदी हो गए, और शोधकर्ताओं ने उन्हें बच्चे से पालने में मदद की, जिससे पूरी प्रक्रिया इस अनूठी सफलता तक पहुंच गई।
गुवाहाटी चिड़ियाघर में हिमालयी गिद्ध की कैप्टिव ब्रीडिंग फ्रांस के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा उदाहरण है, जहां इस प्रजाति की कैप्टिव ब्रीडिंग हुई है।
भारत में गिद्ध प्रजनन केंद्र
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) द्वारा हरियाणा के पिंजौर, मध्य प्रदेश के भोपाल, असम के रानी और पश्चिम बंगाल के राजभटखावा में स्थापित चार गिद्ध कैप्टिव प्रजनन केंद्रों में व्हाइट-रंप्ड गिद्ध (जिप्स बेंगालेंसिस), स्लेंडर-बिल्ड गिद्ध (जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस), और भारतीय गिद्ध (जिप्स इंडिकस) के संरक्षित ब्रीडिंग में शामिल हैं।
भारत में गिद्ध प्रजाति
भारत में गिद्धों की कुल नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से छह प्रजातियाँ रेजिडेंट (निवासी) हैं। ये हैं; सफ़ेद दुम वाले गिद्ध, भारतीय गिद्ध, लंबे चोंच वाले गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध, दाढ़ी वाले गिद्ध और इजिप्टियन गिद्ध। अन्य तीन प्रजातियाँ प्रवासी हैं: सिनेरियस गिद्ध, ग्रिफॉन गिद्ध और हिमालयन गिद्ध)।
कभी भारत में इनकी संख्या 40 मिलियन थी लेकिन 1990 और 2007 के बीच इस संख्या में भारी गिरावट देखी गई।
विशेषज्ञों के अनुसार, 1993 से 2007 के बीच 99.9 प्रतिशत सफ़ेद दुम वाले गिद्ध और 99 प्रतिशत भारतीय और लंबी चोंच वाली प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं, जबकि अन्य प्रजातियों की संख्या में 81 प्रतिशत से 90 प्रतिशत के बीच गिरावट देखी गई।
विशेषज्ञों ने पशुओं में दर्द निवारक के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पशु चिकित्सा दवा डाईक्लोफेनाक को गिद्धों के लगभग सफाए का मुख्य कारण माना है।
गिद्धों के लिए इस खतरे को देखते हुए, जिसने उन्हें विलुप्त होने के करीब ला दिया था, 2006 में भारत और नेपाल में और 2010 में बांग्लादेश में पशु चिकित्सा में उपयोग के लिए डाईक्लोफेनाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।