हिमाचल विधानसभा ने महिलाओं के लिए विवाह योग्य न्यूनतम आयु बढ़ाने वाला विधेयक पारित किया

हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने 27 अगस्त, 2024 को महिलाओं के लिए विवाह योग्य न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने वाला विधेयक पारित किया।

बाल विवाह निषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024 को ध्वनि मत से पारित किया गया।

इसमें लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार के बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (2006 अधिनियम) में संशोधन करने का प्रयास किया गया है।

वर्तमान में, 2006 अधिनियम की धारा 2(ए) में इक्कीस वर्ष की आयु से कम उम्र के लड़कों तथा अठारह वर्ष की आयु से कम उम्र की लड़कियों को “बालक (चाइल्ड)” को के रूप में परिभाषित किया गया है।

हिमाचल प्रदेश का विधेयक जेंडर-आधारित भेदभाव को हटाता है, और “बालक” को “ऐसा पुरुष या महिला जिसने इक्कीस वर्ष की आयु पूरी नहीं की है” के रूप में परिभाषित करता है।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि विधेयक के प्रावधान अन्य सभी मौजूदा कानूनों पर वरीयता प्राप्त करें, एक नया प्रावधान, धारा 18ए भी जोड़ा गया है। इसका मतलब यह है कि महिलाओं के लिए विवाह योग्य नई न्यूनतम आयु किसी भी परस्पर विरोधी कानून या धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं की परवाह किए बिना पूरे हिमाचल प्रदेश में समान रूप से लागू होगी।

संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची (Concurrent List) की एंट्री-5 विवाह और तलाक के विषय से संबंधित है।

समवर्ती सूची में ऐसे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं। इसलिए, केंद्र और राज्य, दोनों बाल विवाह को विनियमित करने के लिए कानून बना सकते हैं।

चूंकि विधेयक में महिलाओं के लिए विवाह योग्य न्यूनतम आयु अलग रखी गई है, इसलिए इसके प्रावधानों को संसद द्वारा पारित  2006 के अधिनियम के साथ असंगत माना जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 254 (1) के अनुसार, यदि कोई राज्य विधानमंडल समवर्ती सूची में शामिल किसी विषय पर ऐसा कानून बनाता है जो मौजूदा केंद्रीय कानून के प्रावधानों के “विरुद्ध” है, तो राज्य कानून का वह प्रतिकूल या असंगत हिस्सा “अमान्य” माना जाएगा।

इसलिए, हिमाचल प्रदेश विधेयक को लागू होने के लिए, राज्यपाल को इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखना होगा, जिन्हें तब विधेयक पर अपनी स्वीकृति देने का निर्णय लेना होगा।

राज्य विधानमंडल  द्वारा विधेयक पारित किए जाने के बाद, इसे राज्यपाल के समक्ष स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत, राज्यपाल चार विकल्पों का प्रयोग कर सकते हैं – स्वीकृति प्रदान करना, स्वीकृति रोकना, विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस करना या राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना।

किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए तभी आरक्षित किया जा सकता है, जब राज्यपाल को लगता है कि यह उच्च न्यायालय के अधिकार को कमजोर कर सकता है।

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