ग्रेट बैरियर रीफ में पिछले आठ वर्षों में पांचवीं “मास कोरल ब्लीचिंग”

ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef: GBR) पिछले 8 वर्षों में 5वीं बार सामूहिक कोरल ब्लीचिंग (mass coral bleaching) घटना की चपेट में है। ग्रेट बैरियर रीफ में बड़े स्तर ब्लीचिंग पहली बार 1998 में दर्ज की गयी थी। इसके बाद 2002, 2016, 2017, 2020, 2022 में और अब 2024 में फिर से दर्ज की गयी।

ब्लीचिंग ग्लोबल वार्मिंग और अल नीनो जलवायु पैटर्न के कारण हो रही है। वैज्ञानिक ने पाया कि जलवायु परिवर्तन ग्रेट बैरियर रीफ सहित दुनिया भर के महासागरों में  मूंगे के अन्य चट्टानों यानी कोरल रीफ्स इकोसिस्टम के लिए बड़ा खतरा है।

मूंगे अकशेरुकी (invertebrate) जीव हैं जो कि निडारिया (Cnidaria) नामक रंगीन और आकर्षक जीवों के एक बड़े समूह से संबंधित हैं।

प्रत्येक कोरल जीव को पॉलीप (polyp) कहा जाता है, और अधिकांश सैकड़ों से हजारों आनुवंशिक रूप से समान पॉलीप्स समूह में रहते हैं और एक ‘कॉलोनी’ बनाते हैं।

कठोर मूंगे आसपास के समुद्री जल से प्रचुर मात्रा में कैल्शियम निकालते हैं और इसका उपयोग सुरक्षा और विकास के लिए एक कठोर संरचना बनाने में करते हैं। मूंगे यानी कोरल की इन संरचनाओं को ही मूंगा चट्टान या कोरल रीफ्स या प्रवाल भित्तियां कहते हैं।

मूंगा चट्टानें लाखों छोटे पॉलीप्स द्वारा बनाई जाती हैं जो बड़ी कार्बोनेट संरचनाएं बनाती हैं, और सैकड़ों हजारों अन्य प्रजातियों के लिए एक ढांचे और घर का आधार हैं।

प्रवाल भित्तियाँ पृथ्वी पर सबसे बड़ी जीवित संरचना हैं, और अंतरिक्ष से दिखाई देने वाली एकमात्र जीवित संरचना है।

कोरल पॉलीप्स ने छोटे एकल-कोशिका वाले जूजैंथिली (zooxanthellae) शैवाल के साथ सह -संबंध विकसित किया है। प्रत्येक कोरल पॉलीप के ऊतकों के अंदर ये सूक्ष्म, एकल-कोशिका शैवाल रहते हैं और जीवित रहने के लिए स्थान, गैस एक्सचेंज और पोषक तत्व साझा करते हैं।

मूंगा यानी कोरल और शैवाल जीवित रहने के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। कोरल्स का जूजैंथिली (zooxanthellae) नामक सूक्ष्म शैवाल के साथ सहजीवी संबंध होता है जो उनके ऊतकों में रहते हैं।

जब कोरल्स समुद्र के औसत तापमान से अधिक होने के कारण स्ट्रेस में आ जाते हैं, और अपने अंदर रहने वाले उन शैवाल को बाहर निकाल देते हैं जो  उन्हें अपना पोषक तत्व और अलग-अलग रंग प्रदान करते हैं।

शैवाल के बिना कोरल्स अपने भोजन का प्रमुख स्रोत खो देते हैं और ये सफेद या बहुत पीला हो जाते हैं। इससे बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, कोरल ब्लीचिंग कोरल का मरना नहीं है।

यदि तापमान कम होता है, तो कोरल जीवित रह सकते हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि वे बीमारी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं और प्रजनन के लिए संघर्ष करते हैं। गर्मी के स्ट्रेस के अत्यधिक मामलों में, कोरल्स मर सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ा हुआ समुद्र का तापमान कोरल ब्लीचिंग का प्रमुख कारण है।

वर्षा के बाद तटों से होने वाले जल के अपवाह और प्रदूषण महासागरों के जल में प्रवेश करके तटीय मूंगों को ब्लीच कर सकते हैं।

जब तापमान अधिक होता है, तो उच्च सौर विकिरण उथले पानी के कोरल्स की ब्लीचिंग में योगदान देता है।

अत्यधिक निम्न ज्वार के दौरान हवा के संपर्क में आने से उथले कोरल्स में ब्लीचिंग हो सकती है।

ऑस्ट्रेलिया में ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी कोरल सिस्टम है।

यह लगभग 2,300 किमी लंबा है, इटली के आकार से भी बड़े क्षेत्र को कवर करता है और लगभग 3,000 इंडिविजुअल रीफ से बना है।

यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

error: Content is protected !!