हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs)
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, आमतौर पर कूलिंग और रेफ्रिजरेशन के लिए उपयोग की जाने वाली ग्रीनहाउस गैस (GHG) हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) गैर कानूनी तरीके से यूरोपीय क्षेत्र में प्रवेश कर रही है।
हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) सिंथेटिक गैसों का एक समूह है जो मुख्य रूप से शीतलन और प्रशीतन के लिए उपयोग किया जाता है।
वैसे तो HFCs समतापमंडलीय ओजोन परत के क्षरण में योगदान नहीं करते हैं, लेकिन इनमें 12 से 14,000 तक की हाई ग्लोबल वार्मिंग क्षमता होती है, जिसका जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
HFCs सुपर ग्रीनहाउस गैसें हैं। HFCs अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक भी हैं जो वायुमंडल में 15 से 29 वर्ष के बीच रहती है।
HFCs का उपयोग आमतौर पर प्रशीतन और एयर कंडीशनिंग में किया जाता है।
HFCs अपशिष्ट उत्पाद नहीं हैं बल्कि मानव कृत्रिम रूप से उत्पादित सिंथेटिक अणु हैं।
वे वर्तमान वैश्विक GHG उत्सर्जन के 2.3 प्रतिशत के लिए ज़िम्मेदार हैं।
वैश्विक स्तर पर, ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन के तहत HFCs के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन
2016 में, विश्व के देशों ने वैश्विक जलवायु के समक्ष हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) से उत्पन्न खतरे से निपटने के लिए ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन (Kigali Amendment to the Montreal Protocol on Substances that Deplete the Ozone Layer) को अपनाया।
किगाली संशोधन के तहत HFCs के उत्पादन और उपभोग को धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने से सदी के अंत तक आधे डिग्री तक तापमान बढ़ने से बचा जा सकेगा। यूरोप ने इस दिशा में सबसे पहले ठोस कदम उठाए।
भारत ने किगाली संशोधन की पुष्टि की है।
HFCs को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए किगाली संशोधन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुसार, देश 2032 से चार चरणों में HFCs समाप्ति के अपने चरण को पूरा करेगा, जिसमें 2032 में 10 प्रतिशत , 2037 में 20 प्रतिशत, 2042 में 30 प्रतिशत और 2047 में 85 प्रतिशत की संचयी कमी शामिल है।