सरकार बिटुमेन में 35% तक बायो-बिटुमेन मिलाने की अनुमति दे सकती है
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 7 अगस्त, 2024 को संसद में कहा कि सरकार पेट्रोलियम आधारित बिटुमेन में 35% तक लिग्निन (बायो-बिटुमेन) मिलाने की अनुमति देगी, जिससे बिटुमेन के आयात में कमी आ सकती है।
बिटुमेन (अस्फाल्ट)
बिटुमेन, जिसे अस्फाल्ट (Asphalt) के रूप में भी जाना जाता है, कच्चे तेल के डिस्टिलशन के माध्यम से उत्पादित एक काला पदार्थ है और इसका व्यापक रूप से सड़कों और छतों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
अस्फाल्ट या बिटुमेन भी कच्चे पेट्रोलियम की तरह प्राकृतिक रूप से होता है। पेट्रोलियम की तरह, अस्फाल्ट भी एक हाइड्रोकार्बन है जो शैवाल जैसे लंबे समय से मृत जीवों के अवशेषों से बना है।
90% भारतीय सड़कें बिटुमिनस परतों का उपयोग कर रही हैं। 2023-24 में बिटुमेन की खपत 88 लाख टन थी। 2024-25 में इसके 100 लाख टन होने की उम्मीद है।
50% बिटुमेन का आयात किया जाता है और वार्षिक आयात लागत ₹25,000-30,000 करोड़ है।
बायो-बिटुमेन (Bio-bitumen)
बायो-बिटुमेन (Bio-bitumen) एक प्रकार का अस्फाल्ट मिश्रण है, जो अलग-अलग अपशिष्ट प्रकारों से लिग्निन (Lignins) प्राप्त करके बनाया जाता है।
लिग्निन पॉलिमरिक बायोपॉलिमर हैं जो पौधों की कोशिका भित्ति में पाए जाते हैं। जब इन लिग्निन को अन्य पॉलिमर, जैसे बिटुमेन और सल्फर के साथ मिश्रित किया जाता है, तो वे एक बाइंडिंग एजेंट बनाते हैं जिसका उपयोग अस्फाल्ट में किया जा सकता है।
देहरादून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने धान की पराली या पुआल (पैडी स्ट्रॉ) से बायो-बिटुमेन विकसित किया है। एक टन पराली से 30% बायो-बिटुमेन, 350 किलोग्राम बायो-गैस और 350 किलोग्राम बायोचार प्राप्त होता है।
35% तक बायो-बिटुमेन को बिटुमेन में बदलने की प्रक्रिया सफल रही है। इससे 10,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत होने की उम्मीद है और पेटेंट भी दाखिल किया जा चुका है।
पेट्रोलियम आधारित बिटुमेन की कीमत 50 रुपये प्रति किलोग्राम है, जबकि बायोमास (पैडी स्ट्रॉ) से बायो-बिटुमेन की कीमत 40 रुपये प्रति किलोग्राम है।
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के पास पानीपत में पैडी स्ट्रॉ से प्रतिदिन एक लाख लीटर इथेनॉल बनाने के अलावा प्रतिदिन 150 टन बायो-बिटुमेन और प्रति वर्ष 88,000 टन बायो-एविएशन ईंधन बनाने की परियोजना है।
बायो-बिटुमेन से होने वाले लाभों में बिटुमेन आयात में कमी, ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कमी और किसानों/लघु और माध्यम उद्योगों के लिए राजस्व उत्पन्न करने और रोजगार प्रदान करने का अवसर शामिल हैं।