तिब्बत के सेडोंगपु गली में मास वेस्टिंग से ब्रह्मपुत्र में तलछट जमाव का खतरा

एक नए अध्ययन में 2017 से तिब्बती पठार के सेडोंगपु गली (Sedongpu Gully) में बार-बार मास वेस्टिंग (mass wasting) की घटनाएं घटित होने और इस क्षेत्र के तेजी से गर्म होने के प्रति चिंता व्यक्त की गई है।

ये घटनाएं भारत के लिए, विशेष रूप से देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए बुरी खबर हो सकती है।

मास वेस्टिंग एक भूगर्भीय परिघटना है। यह ग्रेविटेशन के प्रभाव से ढलान से नीचे चट्टान और मिट्टी के मलबों का नीचे गिरना है।

गली (gully) एक प्रकार की भू-आकृति है जो बहते पानी, मलबों के तेजी से बहने या दोनों के अपरदन द्वारा बनाई जाती है।

सेडोंगपु गली तिब्बती पठार में सेडोंगपु ग्लेशियर और इसकी घाटी के जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट) में स्थित है।

यह 11 किमी लंबी है और 66.8 वर्ग किमी में फैली हुई है।

यह ऊपर से गिरती हुई यारलुंग ज़ंगबो, या त्सांगपो नदी में मिलती है, जहाँ से यह एक तीव्र मोड़ लेती है – जिसे ग्रेट बेंड कहा जाता है।

यह ग्रेट बेंड अरुणाचल प्रदेश के साथ तिब्बत की सीमा के करीब है, जहाँ त्सांगपो नदी सियांग नदी के रूप में बहती है।

असम में आगे की ओर, सियांग नदी दिबांग और लोहित से मिलकर ब्रह्मपुत्र बनाती है, जो बांग्लादेश में जमुना के रूप में बहती है।

सेडोंगपु पर की गई स्टडी का त्सांगपो-सियांग-ब्रह्मपुत्र-जमुनानदी प्रणाली के लिए गंभीर चिंता पैदा करती है, खासकर भारत और बांग्लादेश में।

सेडोंगपु गली से होकर मास वेस्टिंग यानी मलबे त्सांगपो नदी में प्रवेश करती है। इस तरह इस नदी के मार्ग में बड़ी मात्रा में तलछट प्रवेश का रहा है। बता दें कि यह नदी पहले से ही दुनिया की सबसे अधिक तलछट वाली नदियों में से एक है।

तलछट के जमाव से नदी का तल और भी ऊपर उठ सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।

असम और बांग्लादेश में नदी के मार्ग लीन सीजन में रेत और गाद से भर सकते हैं, जिससे नेविगेशन मुश्किल हो सकता है और मछली पकड़ने से जुड़ी आजीविका प्रभावित हो सकती है।

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