सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस ए. एम. खानविलकर लोकपाल के अध्यक्ष नियुक्त किए गए
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर (Justice Ajay Manikrao Khanwilkar) को 27 फरवरी को लोकपाल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
न्यायमूर्ति खानविलकर ने 13 मई, 2016 से 29 जुलाई, 2022 तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। न्यायमूर्ति लिंगप्पा नारायण स्वामी, न्यायमूर्ति संजय यादव और न्यायमूर्ति ऋतु राज अवस्थी को न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है।
लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति की सिफारिशें प्राप्त करने के बाद की जाती है।
एक अध्यक्ष के अलावा, लोकपाल में आठ सदस्य हो सकते हैं – चार न्यायिक और इतने ही गैर-न्यायिक सदस्य। न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष के 27 मई, 2022 को अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद से लोकपाल अपने नियमित अध्यक्त के बिना काम कर रहा था।
लोकपाल संस्था
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने लोकपाल नामक संस्था की स्थापना के लिए मार्ग प्रशस्त किया। यह एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, जिसका उद्देश्य प्रधान मंत्री सहित सार्वजनिक पद धारण करने वाले सभी व्यक्तियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करना है।
यह अधिनियम भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के कोई अन्य न्यायाधीश या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने का प्रावधान करता है।
इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति करती है जिसमें लोक सभा के अध्यक्ष, लोक सभा में विपक्ष के नेता तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश (या उनके द्वारा नामित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश) सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया गया।
लोकपाल की शक्तियां
लोकपाल के पास ऐसे किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने का अधिकार क्षेत्र है जो प्रधान मंत्री है या केंद्र सरकार में मंत्री है, या संसद सदस्य है, साथ ही समूह A, B, C और D के तहत केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर सकता है।
यह किसी भी सोसायटी या ट्रस्ट या निकाय को भी कवर करता है जो ₹10 लाख से अधिक का विदेशी योगदान प्राप्त करता है।
यदि आरोप अंतरराष्ट्रीय संबंधों, बाहरी और आंतरिक सुरक्षा, पब्लिक आर्डर, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित हैं, तो लोकपाल प्रधान मंत्री के खिलाफ किसी भी भ्रष्टाचार के आरोप की जांच नहीं कर सकता है, जब तक कि लोकपाल की पूर्ण पीठ, जिसमें इसके अध्यक्ष और सभी सदस्य शामिल न हों, जांच शुरू करने पर विचार करता है और कम से कम दो-तिहाई सदस्य इसका अनुमोदन करते हैं।
जब कोई शिकायत प्राप्त होती है, तो लोकपाल अपनी जांच शाखा द्वारा प्रारंभिक जांच का आदेश दे सकता है, या प्रथम दृष्टया मामला होने पर इसे सीबीआई सहित किसी भी एजेंसी द्वारा जांच के लिए भेज सकता है। इसे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले लोक सेवक और “सक्षम प्राधिकारी” (कम्पीटेंट अथॉरिटी) दोनों से टिप्पणियां मांगनी होंगी।
प्रत्येक श्रेणी के लोक सेवक के लिए एक अलग ‘सक्षम प्राधिकारी’ होगा। उदाहरण के लिए, प्रधान मंत्री के लिए लोकसभा, और अन्य मंत्रियों के लिए प्रधान मंत्री सक्षम प्राधिकारी होगा और विभाग के अधिकारियों के लिए, यह संबंधित मंत्री होगा।
जिस एजेंसी को जांच करने का आदेश दिया गया है उसे अपनी जांच रिपोर्ट उचित जूरिस्डिक्शन वाली अदालत में और एक प्रति लोकपाल के समक्ष दाखिल करनी होगी।
कम से कम तीन सदस्यों की एक पीठ रिपोर्ट पर विचार करेगी और एजेंसी की चार्जशीट के आधार पर लोक सेवक के खिलाफ कार्रवाई आगे बढ़ने के लिए अभियोजन विंग को मंजूरी दे सकती है।
यह कम्पीटेंट अथॉरिटी को विभागीय कार्रवाई करने या रिपोर्ट को बंद करने का निर्देश देने के लिए भी कह सकता है। लोकपाल को ऐसी मंजूरी देने से पहले ‘सक्षम प्राधिकारी’ के साथ-साथ लोक सेवक की टिप्पणियों की भी मांग करनी होगी।