लोकसभा ने वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 पारित किया
लोकसभा ने 26 जुलाई को वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 (Forest Conservation (Amendment) Bill, 2023) पारित किया। इससे पहले, संयुक्त संसद समिति (जेपीसी) ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 में प्रस्तावित सभी संशोधनों को मंजूरी दे दी थी।
यह विधेयक वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 में संशोधन करता है।
विधेयक के प्रमुख बिंदु
विधेयक में केवल ऐसी भूमि शामिल है जिसे भारतीय वन अधिनियम, 1927 या किसी अन्य कानून के तहत वन के रूप में घोषित या अधिसूचित किया गया है।
यह केवल उन वन भूमि को मान्यता देने का प्रयास करता है जो 25 अक्टूबर, 1980 को या उसके बाद वन के रूप में दर्ज की गई थीं।
विधेयक में कहा गया है कि कुछ मामलों में वन भूमि को किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग करने हेतु पूर्व-मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। इन मामलों में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं या नियंत्रण रेखा (LOC) या वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ 100 किमी की दूरी के भीतर स्थित वन भूमि भी शामिल है, और जिसका उपयोग राष्ट्रीय महत्व की रणनीतिक परियोजना के निर्माण के लिए किया जाना है। लगभग पूरा पूर्वोत्तर क्षेत्र इस श्रेणी में आएगा।
यह संशोधन विधेयक रेल लाइन या सरकार द्वारा बनाए गए सार्वजनिक सड़क के किनारे स्थित पट्टी वनों (0.10 हेक्टेयर या हेक्टेयर तक) के मामले में भी पूर्व वन मंजूरी से छूट देता है; निजी भूमि पर वृक्षारोपण जो वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं है; वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित क्षेत्र में रक्षा संबंधी या सार्वजनिक यूटिलिटी परियोजनाओं के निर्माण के लिए 5 हेक्टेयर तक क्षेत्र का उपयोग करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
इस अधिनियम का नाम बदलकर वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 कर दिया गया है।
वन संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 में संस्थाओं को रिजर्व वन भूमि को रद्द करने और अन्य उद्देश्यों के लिए वन भूमि के उपयोग के लिए केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता है।
निजी संस्थाओं को वन भूमि पट्टे पर देने के लिए भी सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है। विधेयक में वनों के संरक्षण के उद्देश्य सेअग्रणी वन कर्मचारियों, इकोटूरिज्म, चिड़ियाघर और सफारी के लिए बुनियादी ढाँचा के निर्माण को वानिकी गतिविधियों की सूची में जोड़ी गईं हैं।
वन क्षेत्रों में सर्वेक्षण और जांच को इस तथ्य के मद्देनजर गैर-वानिकी गतिविधि नहीं माना जाएगा क्योंकि ऐसी गतिविधियां अस्थायी प्रकृति की हैं और इसमें भूमि उपयोग में कोई प्रत्यक्ष परिवर्तन शामिल नहीं है।
विधेयक की धारा 6 केंद्र सरकार को अधिनियम के उचित कार्यान्वयन के लिए निर्देश जारी करने का अधिकार देती है।