विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल)
हाल ही में, असम सरकार ने राज्य की पुलिस की सीमा शाखा (बॉर्डर विंग) को आदेश दिया कि वह 2014 से पहले अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले गैर-मुस्लिमों के मामलों को विदेशी न्यायाधिकरणों (Foreigners Tribunals) को न भेजे।
यह आदेश नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 यानी CAA के अनुरूप है जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये गैर-मुस्लिमों – हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, पारसियों, जैनियों और बौद्धों के लिए नागरिकता आवेदन विकल्प प्रदान करता है।
विदेशी न्यायाधिकरण यानी फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जिनका गठन फॉरेनर्स एक्ट 1946 की धारा 3 के तहत विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश 1964 के माध्यम से किया गया है, ताकि किसी राज्य में स्थानीय प्राधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को न्यायाधिकरण के पास भेज सकें, जिस पर विदेशी होने का संदेह हो।
विदेशी न्यायाधिकरण वर्तमान में असम के लिए विशिष्ट हैं क्योंकि अन्य राज्यों में “अवैध अप्रवासियों” के मामलों को विदेशी अधिनियम के अनुसार निपटाया जाता है।
प्रत्येक विदेशी न्यायाधिकरण का नेतृत्व न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं और न्यायिक अनुभव वाले सिविल सेवकों में से एक सदस्य द्वारा किया जाता है।
गृह मंत्रालय ने 2021 में संसद को बताया कि असम में 300 विदेशी न्यायाधिकरण हैं। इस आदेश के तहत विदेशी न्यायाधिकरण केवल असम में स्थापित किए गए हैं।
1964 के आदेश के अनुसार, एक विदेशी न्यायाधिकरण के पास कुछ मामलों में सिविल कोर्ट की शक्तियां होती हैं, जैसे किसी भी व्यक्ति को समन करना और उसे उपस्थित कराना और शपथ पर उसकी जांच करना।
‘D’ यानी संदिग्ध मतदाताओं के मामलों को भारत के चुनाव आयोग द्वारा फॉरेनर्स को भेजा जा सकता है और अगस्त 2019 में असम में जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से बाहर रखे गए लोग अपनी नागरिकता साबित करने के लिए संबंधित विदेशी न्यायाधिकरण में अपील कर सकते हैं।
फॉरेनर्स एक्ट 1946 और विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश 1964 के प्रावधानों के तहत, केवल फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल को ही किसी व्यक्ति को विदेशी घोषित करने का अधिकार है।
इस प्रकार, NRC में किसी व्यक्ति का नाम शामिल न होना अपने आप में उसे विदेशी घोषित करना नहीं है।