हंटिंगटन डिजीज पर नई स्टडी
हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक नई स्टडी में मॉलिक्यूल लेवल पर हंटिंगटन डिजीज (Huntington’s disease) के बढ़ने पर प्रकाश डाली गयी है।
हंटिंग्टन डिजीज
हंटिंगटन डिजीज एक वंशानुगत बिमारी है जिसके कारण मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) धीरे-धीरे टूटने लगती हैं और मर जाती हैं।
यह रोग मस्तिष्क के उन क्षेत्रों पर हमला करता है जो स्वैच्छिक (जानबूझकर) क्रिया को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, साथ ही अन्य क्षेत्रों पर भी।
हंटिंगटन रोग HTT नामक जीन के म्युटेशन वर्शन के कारण होता है। HTT जीन हंटिंग्टन या Htt नामक प्रोटीन के लिए कोड करता है।
मानव शरीर में तंत्रिका कोशिकाओं को उनके सामान्य कामकाज और अस्तित्व के लिए Htt प्रोटीन की आवश्यकता होती है। हालांकि, म्युटेशन जीन एक असामान्य Htt प्रोटीन को एनकोड करता है जो इसके बजाय मूवमेंट, सोच और स्मृति को नियंत्रित करने वाले न्यूरॉन्स को नष्ट कर देता है।
सबसे पहले, हंटिंगटन रोग के रोगियों में हल्के लक्षण होते हैं: जैसे कि भूलने की बीमारी, संतुलन नहीं रखा पाना, और साधारण कार्य करने में भी अनाड़ीपन दिखाना।
इसके गंभीर लक्षण 30-50 वर्ष की उम्र में शुरू होते हैं, जब तक रोगी के बच्चे भी हो सकते हैं। हालत धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है। रोगी को मूड में बदलाव होता है, तर्क करने में कठिनाई होती है, असामान्य और अनियंत्रित झटकेदार हरकतें दिखाई देती हैं, और बोलने, निगलने और चलने में कठिनाई का अनुभव होता है। अंततः रोगी की मृत्यु हो जाती है।
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।
गौरतलब है कि हम में से प्रत्येक के पास HTT जीन की दो प्रतियां हैं: एक हमें पिता से और एक मां से विरासत में मिली है। बीमारी तब भी शुरू हो जाती है जब जीन की केवल एक प्रति ही म्युटेट होती है जबकि दूसरी सामान्य होती है। अर्थात्, म्युटेशन जीन को उसके साधारण समकक्ष पर प्रभावी कहा जाता है।