वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021: प्रमुख विशेषताएं

लोकसभा ने 2 अगस्त, 2022 को  वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 (Wild Life (Protection) Amendment Bill, 2021) पारित कर दिया। विधेयक को पहली बार लोकसभा में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा 17 दिसंबर, 2021 को पेश किया गया था। बाद में इसे स्थायी समिति को विचार के लिए भेज दिया गया था।

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 की प्रमुख विशेषताएं

 यह विधेयक वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करता है।

बिल का उद्देश्य वन्यजीवों  और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) को लागू करना सुनिश्चित करना है।  यह विधेयक CITES कन्वेंशन द्वारा संरक्षित प्रजातियों की संख्या का विस्तार करता है।

यह विधेयक अनुसूचियों की संख्या 6 से घटाकर 4 कर दिया है।

पिछले वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में विशेष रूप से संरक्षित पौधों के लिए 1, विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिए 4 और वर्मिन प्रजाति (रोग के वाहक छोटे जानवर और भोजन को नष्ट  करने वाले जानवर) के लिए 1  अनुसूची थी। संशोधित बिल वर्मिन प्रजातियों के लिए शेड्यूल को समाप्त करके और विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिए शेड्यूल की संख्या को 4 से घटाकर दो कर दिया है।  इस तरह शेड्यूल/अनुसूची की कुल संख्या को घटाकर चार कर दिया है।

यह CITES के तहत सूचीबद्ध प्रजातियों के लिए एक नया शेड्यूल भी सम्मिलित करता है।

यह विधेयक केंद्र सरकार को एक प्राधिकरण नामित करने का प्रावधान करता है जो प्रजातियों के व्यापार के लिए निर्यात या आयात लाइसेंस प्रदान करेगा। जो कोई भी अनुसूचित प्रजातियों का ट्रेड करता है, उसे लेन-देन की बारीकियों के बारे में उपयुक्त प्राधिकारी को सूचित करना होगा।

अनुसूचित जानवरों के जीवित प्रजाति रखने वाले लोगों को प्रबंधन प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।  

यह विधेयक सरकार को  आक्रामक विदेशी प्रजातियों ( invasive alien species), या जो भारत की देशी प्रजाति नहीं हैं, के आयात, व्यापार और कैप्टिव को नियंत्रित करने या अवैध करने का अधिकार देता है।

विधेयक में कानून  के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए जुर्माने की राशि बढ़ा दी गयी  है। 1972 के अधिनियम के तहत, सामान्य जुर्माना ₹ 25,000 तक था जिसे बढ़ाकर ₹ 1,00,000 कर दिया गया है। विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिए प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए, पिछला जुर्माना ₹10,000 तक था और अब इसे बढ़ाकर कम से कम ₹25,000 कर दिया गया है।

यह विधेयक वन्यजीव अभयारण्यों के अधिक नियंत्रण और विनियमन को भी सुनिश्चित करेगा और सरकार को  अभयारण्यों या राष्ट्रीय उद्यानों के बगल में स्थित  क्षेत्र को वनस्पतियों और जीवों की रक्षा के लिए कंज़र्वेशन रिज़र्व (conservation reserve) अधिसूचित करने का अधिकार देता है।

इसके अतिरिक्त, बिल किसी भी व्यक्ति को किसी भी बंदी जानवरों या पशु उत्पादों को स्वेच्छा से आत्मसमर्पण करने का प्रावधान करता है जिसके लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा और आइटम राज्य सरकार की संपत्ति बन जाएंगे।

वन्यजीवों  और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)

वर्ष 1973 का ‘वन्यजीवों  और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES: Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora)  देशों की मंजूरी के माध्यम से सभी सूचीबद्ध प्रजातियों  के व्यापार को विनियमित करने और जीवित जानवरों के नमूनों के बंदी (कैप्टिव) में रखने को विनियमित करने पर बल देता है ताकि इससे प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा न हो।

यह  सरकारों के बीच हस्ताक्षरित एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।

CITES एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका देश और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वेच्छा से पालन करते हैं

जिन देशों ने कन्वेंशन (CITES) से बाध्य होने पर सहमति व्यक्त की है, उन्हें पक्षकार के रूप में जाना जाता है। हालांकि CITES पक्षकारों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी है – दूसरे शब्दों में उन्हें कन्वेंशन को लागू करना होगा – लेकिन यह राष्ट्रीय कानूनों की जगह नहीं लेता है। इसके बजाय यह प्रत्येक पक्षकार  द्वारा सम्मानित किए जाने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है,  यह सुनिश्चित करने के लिए अपने घरेलू कानून में CITES  को अपनाकर  राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू किया जाए।

वर्तमान में 184 देश इसके पक्षकार हैं।

जब किसी देश की सरकार या एक क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन यह निर्णय लेता है कि वह CITES के प्रावधानों से बाध्य होगा, तो वह डिपाजिटरी सरकार को लिखित रूप में इस आशय की एक औपचारिक घोषणा करके कन्वेंशन में शामिल हो सकता है। स्विट्जरलैंड डिपाजिटरी सरकार (Depository Government) की भूमिका में है।  

भारत ने 20 जुलाई 1976 को संधि की अभिपुष्टि (रैटिफाय) की।

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