नोटा (NOTA) को अधिक वोट मिलने पर फिर से चुनाव कराने हेतु सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल को एक जनहित याचिका पर भारत के चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में नोटा (NOTA: none of the above/इनमें से कोई नहीं) विकल्प को अन्य उम्मीदवारों से अधिक मत मिलने यानी बहुमत मिलने पर चुनाव को रद्द करने और नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश देने की मांग की गई है।
शीर्ष अदालत ने लेखक, कार्यकर्ता और प्रेरक वक्ता शिव खेड़ा की जनहित याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसरण में चुनावों में मतदाताओं को नोटा का विकल्प प्रदान किया जाता है।
जनहित याचिका में चुनाव आयोग को ऐसे नियम बनाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है, जिसमें कहा गया हो कि नोटा से कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को पांच साल की अवधि के लिए सभी चुनाव लड़ने से रोक दिया जाएगा।
नोटा (NOTA: none of the above/इनमें से कोई नहीं)
गौरतलब है 27 सितंबर, 2013 को, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की कि मतदाताओं के पास अपना मत डालते समय “इनमें से कोई नहीं” (NOTA) चुनने का विकल्प होना चाहिए, और यह अनिवार्य किया कि चुनाव आयोग इसके लिए EVM में एक बटन जोड़ना चाहिए।
यह विकल्प सभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में है।
चुनाव आयोग और विभिन्न राज्य चुनाव आयोगों ने नवंबर 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) में नोटा की शुरुआत की थी।
वर्तमान में, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में नोटा को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, तो दूसरे सबसे अधिक वोट प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है। नोटा बटन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) पर उम्मीदवारों की सूची में सबसे नीचे बना होता है।
2018 के बाद से, महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और पुडुचेरी जैसे कई राज्यों ने चुनाव परिणाम घोषित करते समय नोटा को “काल्पनिक चुनावी उम्मीदवार” के रूप में मानना शुरू कर दिया।
नकारात्मक वोट के विपरीत, नोटा तटस्थ यानी न्यूट्रल वोटिंग है और इसका कोई संख्यात्मक मूल्य नहीं है।
भारतीय चुनावों में नोटा एक लोकप्रिय विकल्प नहीं रहा है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, NOTA को केवल 1.06% वोट मिले, जो 2014 के चुनावों में मिले 1.08% से कम है।