वित्त मंत्री ने विश्व बैंक की शाखा IFC से भारत को अधिक ऋण देने का आग्रह किया
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विश्व बैंक की निजी क्षेत्र की निवेश शाखा, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation : IFC) से आग्रह किया है कि भारत को अगले दो वर्षों में 2 बिलियन डॉलर से अधिक और अगले तीन-चार वर्षों में 3-3.5 बिलियन डॉलर तक उधार दिया जाए।
IFC के प्रबंध निदेशक मुख्तार दीप, जिन्होंने 18 सितंबर को सुश्री सीतारमण से मुलाकात की, ने कहा कि IFC अपने भारत के निवेश को बढ़ाने के लिए ‘एक सक्रिय दृष्टिकोण’ अपनाएगा और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को वित्तपोषण का विस्तार करेगा। इससे देश के ‘मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के प्रयास’ को बल मिलेगा।
अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
IFC विकासशील देशों में निजी क्षेत्र पर केंद्रित सबसे बड़ा वैश्विक विकास संस्थान है।
IFC, विश्व बैंक समूह का एक सदस्य है।
यह आर्थिक विकास को आगे बढ़ाता है और विकासशील देशों में निजी क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करके लोगों के जीवन में सुधार करता है।
IFC की स्थापना 1956 में एक साहसिक विचार पर की गई थी: कि निजी क्षेत्र में विकासशील देशों को बदलने की क्षमता है।
IFC देशों को अपने निजी क्षेत्रों को विभिन्न तरीकों से विकसित करने में मदद करता है: ऋण, इक्विटी निवेश, ऋण प्रतिभूतियों और गारंटियों के माध्यम से कंपनियों में निवेश करना, अन्य उधारदाताओं और निवेशकों से ऋण भागीदारी; समानांतर ऋण और अन्य साधनों के माध्यम से पूंजी जुटाना और व्यवसायों और सरकारों को सलाह देना; निजी निवेश को बढ़ावा देना और निवेश के माहौल में सुधार लाना।
हालांकि यह विश्व बैंक समूह का हिस्सा है, लेकिन IFC एक अलग कानूनी इकाई है, जिसके अलग समझौते, शेयर पूंजी, वित्तीय संरचना, प्रबंधन और कर्मचारी शामिल हैं।
IFC की सदस्यता केवल विश्व बैंक के सदस्य देशों के लिए खुली है।
विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष IFC के अध्यक्ष भी हैं।
IFC ग्राहकों को ऋण देने और अपनी वित्तीय मजबूती बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों में बांड जारी करने के माध्यम से पूंजी जुटाता है।