कोल माइन क्लोजर-अचीविंग जस्ट ट्रांजीशन फॉर ऑल

केंद्रीय कोयला और खान मंत्री श्री प्रल्हाद जोशी ने 9 नवंबर को इंदौर में कोयला मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें कोयला क्षेत्र के “कोल माइन क्लोजर-अचीविंग जस्ट ट्रांजीशन फॉर ऑल’ (Coal Mine Closure – Achieving Just Transition for All) विषय पर चर्चा की गई।

जस्ट ट्रांजीशन (Just Transition)

बता दें कि वर्ष 2015 में पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 21) में हुई जलवायु घोषणाओं में शामिल होने के बाद ‘Just Transition टर्म का प्रयोग व्यापक रूप से बढ़ा है।

इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि कार्बन गहन ऊर्जा स्रोत से कम कार्बन उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोत में बदलाव, उस स्रोत पर निर्भर लोगों के लिए कठोर नहीं होना चाहिए।

यह उम्मीद की जाती है कि ऐसे लोगों को बदलाव के कुप्रभाव के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए और/या उन्हें फिर से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए तथा उन्हें कुछ अन्य कम कार्बन उत्सर्जन वाली आर्थिक गतिविधियों में पुन: नियोजित किया जाना चाहिए।

भारत में जस्ट ट्रांजीशन

भारत में जस्ट ट्रांजीशन के बारे में बोलते हुए श्री प्रल्हाद जोशी ने समिति के सदस्यों को बताया कि कोयले से इतर, ऊर्जा परिवर्तन पर पूरी दुनिया जोर दे रही है। हालांकि, ऊर्जा का एक किफायती स्रोत होने के कारण, कोयला भारत के लिए बहुत महत्‍व रखता है, जो उभरती अर्थव्यवस्था की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का प्रमुख स्रोत है।

कोयला देश की प्राथमिक ऊर्जा आवश्यकता का 51 प्रतिशत से अधिक पूरा करता है और बिजली उत्पादन में लगभग 73 प्रतिशत का योगदान देता है।

इसके अलावा, कोयला स्टील, स्पंज आयरन, एल्युमीनियम, सीमेंट, कागज, ईंट आदि के उत्पादन के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है।

भारत में कोयले की मांग अभी सर्वोच्च स्तर पर नहीं पहुंची है और यह 2040 व इससे आगे तक ऊर्जा मिश्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा। इस प्रकार, भारत में निकट भविष्य में कोयले से पृथक कोई बदलाव नहीं होगा।

बैठक के दौरान, कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव द्वारा एक प्रस्तुति दी गई, जिसमें यह बताया गया कि हालांकि कोयला उपयोग बंद करने की तत्काल कोई चुनौती नहीं है, लेकिन कोयला कंपनियों को पहले से ही बंद हो चुकी खदानों और निकट भविष्य में बंद होने वाली कोयला का प्रबंधन करना होगा।

खदानों को बंद करने का काम, न्यायसंगत सिद्धांतों के अनुरूप ऐसे तरीके से किया जाना चाहिए, जिससे भूमि और बुनियादी ढांचे की संपत्ति का पुनः उपयोग किया जा सके, श्रमिकों और अनौपचारिक रूप से नियोजित लोगों की आजीविका को बनाए रखा जा सके और स्कूलों, अस्पतालों, सामुदायिक भवनों आदि सामाजिक अवसंरचना के समर्थन को जारी रखा जा सके।

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