एम. एस स्वामीनाथन: योगदान और पुरस्कार

भारत की हरित क्रांति के जनक के रूप में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम. एस स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु में 28 सितंबर को चेन्नई में निधन हो गया।

एम. एस स्वामीनाथन के बारे में

मनकोम्बु संबाशिवन स्वामीनाथन (Mankombu Sambasivan Swaminathan) का जन्म तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के कुंभकोणम में हुआ था।

उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, लेकिन स्वामीनाथन की रुचि कृषि में थी और जल्द ही उन्होंने इस क्षेत्र में शोध करना शुरू कर दिया।
भारत में गेहूं और चावल की उच्च उपज देने वाली किस्मों की खेती की शुरुआत करने और आगे विकसित करने में  नेतृत्व प्रदान करने और सफलता के लिए उन्हें “भारत में हरित क्रांति के जनक” (Father of the Green Revolution in India) के रूप में जाना जाता है।

गेहूं की किस्मों पर डॉ. नॉर्मन बोरलॉग (नोबेल शांति पुरस्कार विजेता) के साथ अपने शोध को जारी रखते हुए, डॉ. स्वामीनाथन ने प्रयोगशालाओं में अनाज को भारतीय मृदा के अनुकूल बनाने के लिए संशोधित किया, जिससे कीड़े के संक्रमण से मुक्त अधिक उपज देने वाली फसल को बढ़ावा मिला।

इसके बाद उन्होंने भारत के ग्रामीण उत्तरी क्षेत्र – पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में किसानों को आनुवंशिक रूप से संशोधित गेहूं की इन किस्मों की खेती के लिए फील्ड परीक्षण करने के लिए राजी किया। इस प्रकार भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।

स्वामीनाथन को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।

वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक थे और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (फिलीपींस) के प्रमुख थे।

वह विश्व खाद्य पुरस्कार (World Food Prize) पाने वाले पहले व्यक्ति थे और उन्होंने पुरस्कार से प्राप्त आय का उपयोग प्रसिद्ध एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) नामक गैर-लाभकारी ट्रस्ट की स्थापना के लिए किया।

वर्ष 1954 में, उन्होंने केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक में जैपोनिका किस्मों से इंडिका किस्मों में उर्वरक प्रतिक्रिया के लिए जीन स्थानांतरित करने पर काम करना शुरू किया।

वर्ष 2004 में, स्वामीनाथन को राष्ट्रीय किसान आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और अपनी सिफारिशों में सुझाव दिया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) उत्पादन की भारित औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक (C2+50 Formula) होना चाहिए।

उन्हें विज्ञान और विश्व मामलों पर पगवाश सम्मेलन (Pugwash Conference on science and world affairs) के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। किसी विकासशील देश के नागरिक को पहली बार यह पद हासिल हुआ था। इस सम्मेलन को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा चुका है। 

उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार (1971) और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार (1986) सहित कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा, एच के फिरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार भी दिए जा चुके हैं।

error: Content is protected !!