दिव्यांगजनों के लिए सुगम्यता का अधिकार मौलिक अधिकार है-सुप्रीम कोर्ट
भारत के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 8 नवंबर को कहा कि दिव्यांगजनों का परिवेश, सेवाओं और अवसरों तक पहुँचने का अधिकार (right to access environments, services, and opportunities) आवश्यक मानवीय और मौलिक अधिकार है, जिसे शायद ही कभी जमीन पर महसूस किया गया हो।
यह निर्णय भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के स्वर्णिम त्रिभुज के भीतर एक्सेस के मौलिक अधिकार को लाता है।
शीर्ष अदालत ने माना कि दिव्यांग जनों के अधिकार (RPwD) अधिनियम के प्रावधानों और इसके तहत अधिसूचित नियमों को अनिवार्य नहीं माना जा रहा था।
पीठ ने केंद्र सरकार को दिव्यांगजनों के लिए सार्वजनिक स्थानों और सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य नियम बनाने का आदेश दिया।
दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (CRPD) के हस्ताक्षरकर्ता होने के बाद, भारत एक आवश्यक अधिकार के रूप में सुगम्यता (accessibility) को बढ़ावा देने के लिए बाध्य है।
2016 में अधिनियमित, RPwD अधिनियम CRPD पर आधारित है और इसका उद्देश्य “यह सुनिश्चित करना है कि सभी दिव्यांग जन बिना किसी भेदभाव के और समान अवसरों के साथ सम्मान के साथ अपना जीवन जी सकें।”
दिव्य कला मेला
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 2 दिसंबर, 2022 को उद्घाटन किया गया दिव्य कला मेला दिव्यांगजनों की समावेशिता और सशक्तीकरण की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर का प्रतिनिधित्व करता है।