कानूनों के तहत “बालक यानी चाइल्ड” की परिभाषा

हाल ही में श्रम, कपड़ा और कौशल विकास पर संसदीय स्थायी समिति की 52वीं रिपोर्ट संसद में पेश की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन के अनुसमर्थन के बाद भी भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के अनुसार बाल श्रम को खत्म करने के उद्देश्य को प्राप्त करने और सतत विकास लक्ष्य में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बाल श्रम को खत्म करने की नीति के कार्यान्वयन अधिक प्रयास करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि सतत विकास लक्ष्य संख्या 8.7 के तहत वर्ष 2025 तक बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत को को विभिन्न कानूनों के तहत ‘बालक यानी चाइल्ड” की एक जैसी परिभाषा रखने की आवश्यकता है क्योंकि अलग-अलग कानूनों में इनकी अलग-अलग परिभाषाएं हैं।

बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 (CALPRA) के अनुसार, ‘बालक’ का अर्थ उस व्यक्ति से है जिसने अपनी आयु का चौदहवाँ वर्ष या ऐसी आयु पूरी नहीं की है जो बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 में निर्दिष्ट की जा सकती है।

बॉल श्रम कानून में 2016 में किये गए संशोधन में 14-18 वर्ष के आयु वर्ग में आने वाले व्यक्तियों को बालक के रूप में  परिभाषित किया गया है।

निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत, ‘चाइल्ड या बालक’ का अर्थ छह से चौदह वर्ष की आयु का पुरुष या महिला है।

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 में1986 में किये गए  संशोधन द्वारा एक ‘चाइल्ड या बालक’ को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने अपनी आयु का चौदहवाँ वर्ष पूरा नहीं किया है।

वहीं, किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 ”चाइल्ड या बालक’  को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है

संसदीय समिति ने यह भी कहा कि CALPRA अधिनियम का उल्लंघन कर बच्चों का नियोजन एक संज्ञेय अपराध है, जबकि JJ अधिनियम, 2015 के तहत, यह एक गैर-संज्ञेय अपराध (non-cognizable offence) है। 

error: Content is protected !!