डीपफेक पर भारत में कानून

भारत सरकार ने गलत सूचनाओं और डीपफेक (deepfakes) की पहचान करने के लिए सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज के लिए सलाह जारी की है।

डीपफेक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के एक रूप  “डीप लर्निंग” का उपयोग करके बनाए गए वीडियो, ऑडियो या इमेज को कहा जाता है।

अब, डीपफेक तकनीक, AI टूल की मदद से अर्ध-और अकुशल व्यक्तियों को रूपांतरित ऑडियो-विजुअल क्लिप और इमेज के साथ नकली या फेक कंटेंट बनाने की अनुमति देती है। डीपफेक तकनीक का उपयोग शुरू से ही काल्पनिक कंटेंट के लिए किया जाता रहा है।

इस तकनीक में जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (generative adversarial network: GAN) नामक मशीन लर्निंग तकनीक का उपयोग करके इमेज और वीडियो को मॉडिफाई करना या क्रिएट करना शामिल है।

AI-ड्रिवेन सॉफ़्टवेयर स्रोत कंटेंट से सब्जेक्ट की गतिविधियों और चेहरे के भावों का पता लगाता है और सीखता है और फिर इन्हें किसी अन्य वीडियो या इमेजमें डुप्लिकेट करता है।

केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज (फेसबुक, एक्स, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम इत्यादि) से  गलत सूचना और डीपफेक की पहचान करने के लिए समुचित प्रयास करने को कहा है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने कहा कि ऐसे मामलों पर आईटी नियम 2021 के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर शीघ्र कार्रवाई की जानी चाहिए।

एडवाइजरी में कहा गया है कि ऐसी सामग्री को रिपोर्टिंग के 36 घंटे के भीतर हटा दिया जाना चाहिए।

इंटरमीडियरीज को याद दिलाया गया कि आईटी अधिनियम और नियमों के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार एक्शन लेने में कोई भी विफलता आईटी नियम, 2021 के नियम 7 का उल्लंघन होगा, और वह आईटी एक्ट की धारा 79(1) के तहत प्राप्त सुरक्षा खो सकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66D के तहत ऑनलाइन प्रतिरूपण (Impersonating) करना गैर कानूनी है।

आईटी नियम, 2021, किसी भी ऐसी कंटेंट को होस्ट करने पर भी रोक लगाता है जो किसी अन्य व्यक्ति का प्रतिरूपण करती है और अलर्ट होने पर सोशल मीडिया फर्मों को कृत्रिम रूप से रूपांतरित इमेज  को हटाने की आवश्यकता होती है।

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