सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम फर्मों द्वारा AGR पर दायर क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज किया
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम फर्मों द्वारा देय समायोजित सकल राजस्व (AGR) पर अपने 2019 के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली क्यूरेटिव पिटीशन (curative petitions) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि क्यूरेटिव पिटीशन पर विचार करने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित मापदंडों में से किसी को भी पूरा नहीं करती।
क्यूरेटिव पिटीशन
क्यूरेटिव पिटीशन (curative petition) सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही का तीसरा चरण है, जो स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) /अपील में कार्यवाही और SLP/अपील में निर्णय की समीक्षा के बाद दायर की जाती है।
ऐसी याचिकाएँ केवल दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों में ही स्वीकार की जाती हैं, अन्यथा नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (Rupa Ashok Hurra vs Ashok Hurra) के ऐतिहासिक निर्णय में क्यूरेटिव याचिका तैयार की थी।
ऐसी याचिका अपने अंतिम निर्णयों में न्याय की घोर चूक को सुधारने के लिए एक न्यायिक पहल है।
अशोक हुर्रा मामले के अनुसार, न्यायालय केवल तभी क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई कर सकता है, जब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हो, पीठासीन न्यायाधीश के विरुद्ध पक्षपात का मामला हो, और/या न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया हो। न्यायालय को ऐसी याचिकाओं पर केवल दुर्लभ परिस्थितियों में ही विचार करना चाहिए, ताकि तुच्छ मुकदमेबाजी को रोका जा सके।
2013 में अधिनियमित सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के आर्डर 48 में क्यूरेटिव याचिका की आवश्यकताओं को संहिताबद्ध किया गया है और इसमें एक वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा एक प्रमाण पत्र जारी करना शामिल है, जो पुष्टि करता है कि कोई याचिका क्यूरेटिव याचिका दायर करने की आवश्यकताओं को पूरा करती है।
भोपाल गैस त्रासदी मामले को क्यूरेटिव याचिका के माध्यम से फिर से सुनवाई के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने औद्योगिक दायित्व और मुआवजे से संबंधित महत्वपूर्ण कानूनी विकास को जन्म दिया।
एक अन्य महत्वपूर्ण मामला दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) द्वारा क्यूरेटिव याचिका को स्वीकार किया जाना था, जिसने भारत में पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्टर कॉन्ट्रैक्ट और विवाद समाधान तंत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।