जानवरों के आकार पर “कोप के नियम” को चुनौती
एक नए शोध से पता चलता है कि जानवरों के आकार में परिवर्तन दो प्रमुख इकोलॉजिकल फैक्टर्स पर निर्भर करता है: प्रजातियों के बीच संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा और पर्यावरण में परिवर्तन के कारण विलुप्त होने का खतरा। यह अध्ययन 18 जनवरी को कम्युनिकेशंस बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस शोध पेपर में “कोप के नियम” (Cope’s rule) को चुनौती दी है। “कोप के नियम” के अनुसार जानवर अपने पूरे विकास के दौरान आकार क्यों बदलते हैं। कोप का नियम बताता है कि किसी जीव समूह में हजारों और लाखों वर्षों में बड़े आकार के होने के रूप में विकसित करने की प्रवृत्ति होती है।
नए शोध पेपर में शोधकर्ताओं ने कहा है कि कोप के नियम में स्पष्ट अपवाद हैं। उदाहरण के लिए, सरीसृप कभी विशाल डायनासोर के आकार के थे, लेकिन वे सिकुड़कर आज हाथ के आकार के गेको और गौरैया के आकार के रह गए हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि समय के साथ जानवरों का आकार बढ़ता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रजातियों के बीच कम प्रतिस्पर्धा के कारण जानवर बड़े होते हैं, उदाहरण के लिए, भोजन प्रचुर मात्रा में होने पर प्रतिस्पर्धा नहीं होगी। जुरासिक काल के दौरान ऐसा ही हुआ था, जब डायनासोर बड़े आकार के हो गए थे।
उनका यह भी कहना है कि कुछ जानवर बड़े हो जाते हैं और फिर विलुप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, डायनासोर और वूली मैमथ प्रतिस्पर्धी मांगों को पूरा करने के लिए विकसित हुए, फिर पर्यावरणीय आपदाओं या अन्य प्रजातियों द्वारा प्रतिस्पर्धा से बाहर होने के कारण विलुप्त हो गए।
शोधकर्ताओं ने कोप के नियम के विपरीत सुझाव दिया है कि प्रजाति समय के साथ छोटी होती जाती है। ऐसा तब होता है जब प्रतिस्पर्धा अधिक होती है तथा हैबिटेट और संसाधनों के उपयोग में कुछ हद तक ओवरलैप होता है। उदाहरण के लिए, हिमयुग के दौरान अलास्का में रहने वाले छोटे घोड़े जलवायु और वनस्पति में परिवर्तन के कारण तेजी से छोटे हो गए।
पिछले 30 वर्षों में ही ध्रुवीय भालू अपने पिछले आकार से दो-तिहाई तक रह गए हैं। और यह ट्रेंड सिर्फ ध्रुवीय भालू में नहीं है – पिछली सदी में पक्षियों, उभयचरों और स्तनधारियों की कई प्रजातियाँ छोटी हो गई हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि जानवर तेजी से बदलती जलवायु के अनुरूप ढल रहे हैं।