राइट टू शेल्टर

सर्वोच्च न्यायालय ने 13 नवंबर को किसी अपराध के आरोपी व्यक्तियों की संपत्तियों को ध्वस्त करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा “बुलडोजर की कार्रवाई” (बुलडोजर जस्टिस/bulldozer actions) के खिलाफ निर्देश मांगने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति गवई ने बताया कि यह कार्रवाई अनुच्छेद 21 के तहत राइट टू शेल्टर (right to shelter) की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करता है।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में, पब्लिक ऑथोरिटीज पर जवाबदेही तय करने के लिए कई “बाध्यकारी निर्देश” जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल किया। इन निर्देशों के अनुसार ऐसे घरों को ढाहने से पहले 15 दिन पहले सूचना देना शामिल है।

पब्लिक प्रॉपर्टी पर अतिक्रमण के मामले में या अदालत द्वारा ध्वस्तीकरण के आदेश दिए जाने पर ये निर्देश लागू नहीं होंगे।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि सरकार खुद को न्यायाधीश नहीं समझ सकती है, जो बिना किसी सुनवाई के किसी आरोपी को दोषी ठहराए और उसके और उसके परिवार के घर और उनकी साझा यादों को बुलडोजर से नष्ट करके उसे और उसके परिवार को “सामूहिक दंड” दे।

न्यायालय ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि  विध्वंस प्रक्रिया की पूरी तरह से वीडियोग्राफी की जाए। इसके बाद, एक विस्तृत  रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए, जिसमें ऑपरेशन में शामिल पुलिस अधिकारियों और कर्मियों के नाम निर्दिष्ट किए जाएं।

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