चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग: प्रमुख तथ्य
भारत के चंद्र मिशन “चंद्रयान-3” ने 23 अगस्त 2023 को शाम 6:04 बजे चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग (Chandrayaan-3 Soft Landing) करके इतिहास रच दिया।
प्रमुख तथ्य
- लैंडर विक्रम के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने के साथ, भारत ऐसा करने वाला एकमात्र देश बन गया है।
- साथ ही, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और तत्कालीन सोवियत संघ के बाद भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट-लैंडिंग की तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बन गया।
- जैसे ही लैंडर ने चंद्रमा की सतह को छुआ, इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC), बेंगलुरु के मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (MOX) में जोड़दार जश्न मनाया गया।
- सफल लैंडिंग ने 2019 में चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की विफलता की दर्दनाक यादें मिटा दी हैं।
- चंद्रयान-3 मिशन के तीन उद्देश्य थे/हैं; चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना, चंद्रमा पर घूमते रोवर का प्रदर्शन करना और इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना।
- सॉफ्ट लैंडिंग का सीधा सा मतलब है किसी अंतरिक्ष यान को नुकसान न पहुंचाने के लिए धीमी, नियंत्रित गति से उतरना। ऐसा करना अंतरिक्ष यान की तकनीकी क्षमताओं को प्रदर्शित करता है। लैंडिंग स्थल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर है।
- बता दें कि इससे पहले चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान चंद्रमा के भूमध्य रेखा के पास के क्षेत्र में उतरे हैं, क्योंकि यह आसान और सुरक्षित है।
- एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) के मिशन जीवन वाले लैंडर और रोवर के पास चंद्र सतह पर प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिक पेलोड हैं।
- चंद्रयान-3 मिशन 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र
- हालाँकि, चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र अलग-अलग हैं। कई हिस्से सूरज की रोशनी के बिना पूरी तरह से अंधेरे क्षेत्र में हैं, और तापमान 230 डिग्री सेल्सियस से नीचे जा सकता है। इससे उपकरणों के संचालन में कठिनाई उत्पन्न होती है।
- अत्यधिक ठंडे तापमान का मतलब यह हो सकता है कि क्षेत्र में फंसी कोई भी चीज़ बिना अधिक बदलाव के वहां जमी रहेगी। इसलिए चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की चट्टानें और मिट्टी प्रारंभिक सौर मंडल के बारे में सुराग प्रदान कर सकती हैं।
- इसके अलावा, हर जगह बड़े-बड़े गड्ढे (क्रेटर) हैं। इसलिए वहां सॉफ्ट लैंडिंग मुश्किल है। हालाँकि दक्षिणी ध्रुव संभावनाओं वाला क्षेत्र भी है। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि इस क्षेत्र के क्रेटर में बर्फ हो सकते हैं जिससे पानी के मौजूद होने की संभावना बनती है।
चंद्रयान-2 से सीख और चंद्रयान-3 उससे अलग कैसे है?
- चंद्रयान-3 के लैंडर के पैरों को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूत किया गया था कि यह 3 मीटर/सेकंड या 10.8 किमी/घंटा की गति से भी उतरने और स्थिर होने में सक्षम हो।
- इस बार संभावित लैंडिंग साइट की सीमा बढ़ गई थी। चंद्रयान-2 के लक्ष्य के अनुसार लैंडिंग के लिए एक विशिष्ट 500mx500m पैच तक पहुंचने की कोशिश करने के बजाय, वर्तमान मिशन को 4kmx2.4km क्षेत्र में कहीं भी सुरक्षित रूप से उतरने के निर्देश दिए गए थे।
- चंद्रयान-3 लैंडर चंद्रयान-2 की तुलना में अधिक ईंधन ले गया। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि जरूरत पड़ने पर लैंडर अपनी लैंडिंग साइट में आखिरी मिनट में बदलाव करने में सक्षम हो।
- चंद्रयान-3 लैंडर में चंद्रयान-2 में केवल दो के बजाय चार तरफ सौर पैनल हैं।