केंद्र सरकार ने हर्बीसाइड ग्लाइफोसेट के उपयोग को सीमित किया

कृषि मंत्रालय ने खेत में शाकनाशी (हर्बीसाइड) का छिड़काव करने के लिए एक पेशेवर कीट नियंत्रक को नियुक्त करना अनिवार्य कर कृषि में ग्लाइफोसेट (glyphosate) रसायन के उपयोग को सीमित (रेस्ट्रिक्ट) कर दिया है।

  • 25 अक्टूबर को इस संबंध में औपचारिक राजपत्र अधिसूचना जारी की गयी। मंत्रालय ने कहा कि वह इस बात से “संतुष्ट है कि ग्लाइफोसेट के उपयोग से स्वास्थ्य के लिए खतरा और मनुष्यों और जानवरों के लिए जोखिम शामिल है।”
  • हालांकि इस कदम को खेती की लागत बढ़ाने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है, परन्तु यह इस केमिकल के विवेकपूर्ण उपयोग को भी सुनिश्चित करेगा।

ग्लाइफोसेट उपयोग

  • अब से, ग्लाइफोसेट केवल ऐसे कीट नियंत्रण ऑपरेटरों (PCO) की निगरानी में उपयोग किया जाएगा, जिन्हें रोडेन्ट्स जैसे कीटों के इलाज के लिए घातक रसायनों का उपयोग करने के लिए लाइसेंस प्राप्त है।
  • भारत में चाय बागानों में ग्लाइफोसेट का प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है जहां हर्बीसाइड को नियंत्रित करने के लिए इसका छिड़काव किया जाता है।
  • ग्लाइफोसेट का उपयोग हर्बिसाइड-सहिष्णु एचटीबीटी कपास (HTBt cotton) में किया जाता है। HTBt कपास एक जीएम फसल है जिसे GEAC द्वारा अनुमोदित किया जाना बाकी है।
  • फिर भी, यह महाराष्ट्र और तेलंगाना में किसानों द्वारा व्यापक रूप से उगाया जाता है।
  • अवांछित वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए गैर-फसल क्षेत्रों में भी ग्लाइफोसेट का उपयोग किया जाता है।
  • कुछ एक्टिविस्ट्स के मुताबिक चना जैसी फसलों में भी ग्लाइफोसेट के इस्तेमाल के संकेत प्राप्त हुए हैं, जहां किसान इसका इस्तेमाल उपज को सुखाने के लिए करते हैं।
  • कृषि मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि अगर कोई कंपनी तीन महीने के भीतर पंजीकरण प्रमाणपत्र वापस करने में विफल रहती है, तो कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी

कैंसर होने का खतरा

  • केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और पंजाब में ग्लाइफोसेट पहले से ही प्रतिबंधित है।
  • इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने 2015 में एक अध्ययन प्रकाशित किया था जिसमें कहा गया था कि ग्लाइफोसेट “शायद मनुष्यों के लिए कार्सिनोजेनिक” है यानी कैंसर होने का खतरा हो सकता है।
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