केंद्र ने गिद्धों के लिए जहरीली दो दवाओं के उत्पादन और वितरण पर रोक लगाई
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 31 जुलाई, 2023 की एक अधिसूचना में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 (40 में से 23) की धारा 26 A के तहत जानवरों के उपयोग के लिए केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक (ketoprofen and aceclofenac) और उनके फॉर्मूलेशन के उत्पादन, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया है।
प्रमुख तथ्य
उपर्युक्त दो दवाइयां उन तीन दवाइयों में शामिल हैं जिन्हें गिद्धों के लिए जानलेवा (vulture-toxic) माना जाता है और जिन पर संरक्षणवादी प्रतिबंध लगाने की मांग करते रहे हैं। तीसरी दवा है निमेसुलाइड जिस पर प्रतिबन्ध नहीं लगा है।
कुल मिलाकर छह गैर-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लमेट्री दवाएं (non-steroidal anti-inflammatory) हैं जो गिद्धों के लिए जहरीली हैं।
संरक्षणवादी दर्द निवारक एसेक्लोफेनाक और केटोप्रोफेन और इसके फॉर्मूलेशन के पशु चिकित्सा उपयोग के लिए तत्काल प्रभाव से रोकने के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कदम की सराहना कर रहे हैं।
लगभग 17 साल पहले (2006), भारत ने पशु चिकित्सा हेतु डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि यह गिद्धों के लिए जहरीला पाया गया था।
बाद में संरक्षणवादियों ने अन्य तीन दवाओं पर भी भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) के समक्ष मामला उठाने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संपर्क किया था। इस मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी।
संरक्षणवादी सुरक्षित विकल्प के रूप में मीलॉक्सिकेम और टॉल्फेनैमिक एसिड का सुझाव दे रहे हैं।
एसिक्लोफेनाक बड़े जानवरों के शरीर में डाईक्लोफेनाक में बदल जाता है, और गिद्ध उनके शव को खाते हैं। हालांकि बाजार में जानवरों के लिए सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं, सुरक्षित विकल्प प्रदान करने और निमेसुलाइड की विषाक्तता स्थापित करने के लिए और अधिक शोध किए जा रहे हैं।
आईवीआरआई और सहयोगियों द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एसिक्लोफेनाक भैंसों में डाईक्लोफेनाक में परिवर्तित हो जाता है, जैसा कि गायों में हुआ, जिससे दक्षिण एशिया में पहले से ही संकट का सामना कर रहे जिप्स गिद्धों के लिए खतरा पैदा हो गया है।