CAR T-सेल थेरेपी क्वार्टेमी (Qartem) को मंजूरी
भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने वयस्क B-सेल नॉन-हॉजकिन लिंफोमा (B-NHL) के उपचार के लिए इम्यूनील थेरेप्यूटिक्स (Immuneel Therapeutics) द्वारा विकसित CAR T-सेल थेरेपी क्वार्टेमी (Qartem) को मंजूरी दी है।
यह मंजूरी ब्लड कैंसर के खिलाफ देश की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण सफलता है।
इम्यूनील थेरेप्यूटिक्स सेल-एंड-जीन थेरेपी स्टार्ट-अप है, जिसे बायोकॉन की संस्थापक किरण मजूमदार शॉ और अमेरिका स्थित ऑन्कोलॉजिस्ट और लेखक डॉ. सिद्धार्थ मुखर्जी का समर्थन प्राप्त है।
वैसे भारत की पहली घरेलू, CAR-T थेरेपी NexCAR19 है जिसे टाटा मेमोरियल सेंटर के सहयोग से ImmunoACT द्वारा विकसित की गई है।
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने 4 अप्रैल, 2024 को IIT बॉम्बे में कैंसर के लिए भारत की पहली घरेलू जीन थेरेपी NexCAR19 लॉन्च की थी।
CAR-T सेल थेरेपी के बारे में
T कोशिकाएं – जो इम्यून रिस्पांस को मैनेज करने में मदद करती हैं और रोगजनकों से संक्रमित कोशिकाओं को सीधे मारती हैं – CAR-T-सेल थेरेपी के आधार हैं।
T-कोशिकाएं श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं जो पूरे शरीर में बीमारी और संक्रमण का पता लगाती हैं और उनसे लड़ती हैं। प्रत्येक T-कोशिका में एक रिसेप्टर होता है जो एंटीजन (प्रतिरक्षा प्रणाली को बाधित करने वाला) को पहचान सकता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी (बैक्टीरिया या वायरस) या शरीर के भीतर के असामान्य एंटीजन को पहचानती है, तो यह उन्हें नष्ट करने का काम कर सकती है।
लेकिन कैंसर कोशिकाओं में कभी-कभी ऐसे एंटीजन होते हैं जिन्हें शरीर नहीं समझ पाता कि ये खतरनाक हैं। परिणामस्वरूप, हमारे शरीर की इम्यून सिस्टम कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए T-कोशिकाओं को लड़ने के लिए नहीं भेज सकती है। अर्थात, ऐसी स्थति में T-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं।
काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर T-कोशिकाएं ऐसी कोशिकाएं हैं जिन्हें प्रयोगशाला में आनुवंशिक रूप से इंजीनियर (बदलाव) किया जाता है। इससे T-कोशिकाओं के पास एक नया रिसेप्टर होता है जिससे वे कैंसर कोशिकाओं से जुड़ सकते हैं और उन्हें मार सकते हैं।
वर्तमान में उपलब्ध CAR-T–सेल उपचार प्रत्येक व्यक्तिगत रोगी के लिए अलग बनाई जाती हैं।
इन्हें रोगी से T कोशिकाओं को निकल करके और उनकी सतह पर काइमरिक एंटीजन रिसेप्टर्स या CAR नामक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए प्रयोगशाला में पुन: इंजीनियरिंग करके बनाया जाता है।
प्रयोगशाला में संशोधित T- कोशिकाओं को लाखों में “विस्तारित” करने के बाद, उन्हें फिर से रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता है, तो CAR-T कोशिकाएं रोगी के शरीर में बढ़ती रहेंगी और, अपने इंजीनियर रिसेप्टर के मार्गदर्शन से, अपनी सतहों पर टारगेट एंटीजन को आश्रय देने वाली किसी भी कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें मार देंगी।
ये रिसेप्टर्स “सिंथेटिक मॉलिक्यूल होते हैं, वे कुदरती रूप से मौजूद नहीं होते हैं।