मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 अक्टूबर को पाँच और भाषाओं को “शास्त्रीय भाषा (classical language)” के रूप में मान्यता देने को मंज़ूरी दी। मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को प्रतिष्ठित श्रेणी में शामिल किया गया है।
ये भाषाएँ पहले से ही शास्त्रीय के रूप में मान्यता प्राप्त छह अन्य भाषाओं की श्रेणी में शामिल हो गई हैं। पूर्व में शामिल शास्त्रीय भाषाएं हैं; तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से शैक्षणिक और सांस्कृतिक रुचि में वृद्धि सुनिश्चित होती है, और यह इन प्राचीन भाषाओं के अनुसंधान और संरक्षण के लिए नए रास्ते खोलता है।
शास्त्रीय भाषा मानदंड
शास्त्रीय भाषा का दर्जा भाषाई विशेषज्ञ समिति द्वारा स्थापित मानदंडों पर आधारित होती है। समिति के अनुसार, किसी भाषा को “शास्त्रीय” माने जाने के लिए निम्नलिखित मानदंडों को पूरा किया जाना चाहिए:
अति प्राचीनता: ऐसी भाषा के प्रारंभिक ग्रंथ और दर्ज इतिहास 1500-2000 वर्षों से अधिक पुराना होना चाहिए।
प्राचीन साहित्य: ऐसी भाषा के प्राचीन साहित्य या ग्रंथों की परंपरा होनी चाहिए और इस भाषा को बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा इन ग्रंथों कोसांस्कृतिक विरासत के रूप में महत्व दिया जाता हो।
ज्ञान ग्रंथ: कविता के अलावा, ऐसी भाषा में गद्य का संग्रह होना चाहिए, जिसमें ज्ञान ग्रंथ, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य शामिल हों।
विशिष्ट विकास: शास्त्रीय भाषा और उसका साहित्य उसके आधुनिक रूप से अलग हो सकता है, या यह अपने मूल ढांचे से संभावित विच्छेद के साथ नए रूपों में विकसित हो सकता है।