सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी (‘लेडी ऑफ जस्टिस’) की नई मूर्ति
सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी (‘लेडी ऑफ जस्टिस’) की नई मूर्ति स्थापित की गई है। इस मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है, और उसके हाथ में तलवार की जगह संविधान की किताब दी गई है। यह मूर्ति सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। यह परिवर्तन ब्रिटिश काल की विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश है।
पुरानी मूर्ति की आंख पर पट्टी ये दर्शाती थी कि कानून की नजर में सब बराबर हैं और यह कानून के अंधे होने का संकेत देती थी। नई मूर्ति का उद्देश्य यह संदेश देना है कि देश में कानून अंधा नहीं है और यह सजा का प्रतीक नहीं है।
हाथ में तलवार अथॉरिटी और अन्याय को सजा देने की शक्ति का प्रतीक थी। नई मूर्ति के हाथ में संविधान यह संदेश देता हिअ कि न्याय संविधान के अनुसार दिया जाता है।
लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति के दाएं हाथ में तराजू बरकरार रखा गया है, क्योंकि यह समाज में संतुलन का प्रतीक है। तराजू दर्शाता है कि कोर्ट किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों को देखते और सुनते हैं।
रोमन माइथोलॉजी की न्याय की देवी जस्टीशिया हैं ‘लेडी ऑफ जस्टिस’ लेडी ऑफ जस्टिस रोमन माइथोलॉजी की न्याय की देवी ‘जस्टीशिया’ हैं। जस्टीशिया न्याय के उस गुण का प्रतीक बन गई, जिसके साथ हर सम्राट अपने शासन को जोड़ना चाहता था।
ब्रिटिश राज ने लेडी जस्टिस की प्रतिमा की शुरुआत की। कलकत्ता उच्च न्यायालय में – जिसका निर्माण पहली बार 1872 में हुआ था – भवन को सहारा देने वाले खंभों पर लेडी जस्टिस की छवियाँ उकेरी गई थीं।