क्या होता है विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा (Special Category Status: SCS)?

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बिहार कैबिनेट ने बिहार राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा (Special Category Status: SCS) देने की मांग करने वाला एक प्रस्ताव पारित किया।

  • गौरतलब है कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश सरकारें भी इस दर्जे की मांग पहले कर चुकी हैं।
  • हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री के मुताबिक, 14वें वित्त आयोग ने साफ कहा है कि राज्यों को अब कोई विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता।
  • पहाड़ी इलाकों, सामरिक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तथा आर्थिक और ढांचागत पिछड़ेपन वाले कुछ पिछड़े राज्यों को लाभ पहुंचाने के लिए 5वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर 1969 में विशेष राज्य का दर्जा देने की शुरुआत की गई थी।

विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त करने के लिए पात्र होने हेतु, राज्यों को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना होता है: –

  • उस राज्य का पहाड़ी एवं दुर्गम भूभाग होना आवश्यक है;
  • उस राज्य का जनसंख्या घनत्व कम हो और/या जनजातीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा होना आवश्यक है;
  • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं वाले सामरिक स्थान वाला राज्य होना चाहिए;
  • आर्थिक और इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर पिछड़ा होना चाहिए;
  • राज्य के वित्तीय संसाधन के स्रोत अनिश्चित होने चाहिए।
  • वर्तमान में, देश में 11 राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त है। ये हैं;असम, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना।
  • विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं (SCS) में 90 प्रतिशत धनराशि केंद्र से मिलती है। सामान्य राज्यों को उन्हीं योजनाओं के तहत केंद्र से 60 फीसदी से 75 फीसदी फंड मिलता है और उन्हें बाकी का प्रबंधन खुद से करना होता है।
  • इन योजनाओं के तहत खर्च न की गयी राशि आगे के वित्तीय वर्षों में खर्च करने की छूट भी इन राज्यों को मिलती है। इसका मतलब है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर उन्हें खर्च न की गयी राशि केंद्र को वापस नहीं भेजना होता है।
  • विशेष दर्जा वाल राज्यों को उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर पर महत्वपूर्ण रियायत मिलती है।
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