बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर (मरणोपरांत) के शताब्दी समारोह से एक दिन पहले उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न (Bharat Ratna) से सम्मानित किया जाएगा।

उनका जन्म 24 जनवरी, 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में हुआ था। वे  नाई समुदाय के एक छोटे किसान के बेटा थे। वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे – पहले दिसंबर 1970 और जून 1971 के बीच भारतीय क्रांति दल के हिस्से के रूप में और बाद में दिसंबर 1977 और अप्रैल 1979 के बीच जनता पार्टी के हिस्से के रूप में।

उन्हें जननायक, या पीपुल्स लीडर नाम दिया गया था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल में डाल दिया गया था।

उन्हें भारतीय राजनीति में अधिकांश सामाजिक न्याय के वास्तुकार के रूप में देखा गया है। वह एक अन्य महान समाजवादी नेता, जयप्रकाश नारायण के साथ आपातकाल विरोधी आंदोलन का हिस्सा थे।

1977 में श्री ठाकुर के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान, मुंगेरीलाल आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें सिफारिश की गई कि पिछड़े वर्गों को अत्यंत पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया जाए। यह रिपोर्ट 1978 में लागू की गई। इससे नवंबर 1978 में बिहार में सरकारी सेवाओं में उनके लिए 26% आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ वर्ष 1954 में शुरू किया गया था।

जाति, पेशा, पद या जेंडर भेदभाव के बिना कोई भी व्यक्ति इस सम्मान को पाने के लिए पात्र है।

यह मानव प्रयास के किसी भी क्षेत्र में उच्चतम स्तर की असाधारण सेवा/प्रदर्शन का सम्मान है।

भारत रत्न के लिए सिफारिशें स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति को की जाती हैं। इसके लिए किसी औपचारिक अनुशंसा की आवश्यकता नहीं है।

किसी वर्ष विशेष यानी एक वर्ष में अधिकतम तीन भारत रत्न सम्मान दिए जा सकते हैं।

सम्मान के तौर पर राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक सनद (प्रमाण पत्र) और एक पदक प्राप्त होता है। सम्मान पाने वाले को कोई कोई मौद्रिक राशि नहीं दी जाती है।

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