नासा “एटमोस्फियरिक वेव एक्सपेरिमेंट (AWE)” लॉन्च करेगा

नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) अंतरिक्ष मौसम (Space weather) को प्रभावित करने वाले कंडक्टर्स में से एक पृथ्वी के मौसम का अध्ययन करने के लिए एटमोस्फियरिक वेव एक्सपेरिमेंट (Atmospheric Waves Experiment: AWE) लॉन्च करेगा।

AWE नासा का अपनी तरह का पहला एक्सपेरिमेंट है जिसका उद्देश्य स्थलीय और अंतरिक्ष मौसम के बीच इंटरैक्शन की स्टडी करना है।

नासा के हेलियोफिजिक्स एक्स्प्लोरर्स प्रोग्राम (Heliophysics Explorers Program) के तहत यह मिशन, वायुमंडल की निचली परतों में वेव्स ऊपरी वायुमंडल और इस प्रकार, स्पेस वेदर को कैसे प्रभावित करती हैं, के बीच संबंधों का अध्ययन करेगा।

यह मिशन पृथ्वी की ओर देखेगा और कलरफुल लाइट बैंड्स को रिकॉर्ड करेगा, जिन्हें आमतौर पर एयरग्लो (airglow) के रूप में जाना जाता है।

नासा का नया मिशन ऊपरी वायुमंडल में अंतरिक्ष के मौसम को संचालित करने वाली फोर्सेज के संयोजन को समझने की कोशिश करेगा।

AWE मेसोपॉज (पृथ्वी की सतह से लगभग 85 से 87 किमी ऊपर) में एयरग्लो को मापेगा, जहां वायुमंडलीय तापमान शून्य से 100 डिग्री सेल्सियस नीचे तक गिर जाता है। इस ऊंचाई पर, इन्फ्रारेड बैंडविड्थ में हल्की एयरग्लो को पकड़ना संभव है, जो सबसे चमकदार दिखाई देता है जिससे आसानी से पता लगाया जा सकता है।

सूर्य से होने वाले उत्सर्जन के प्रभाव के अलावा, स्पेस वेदर भी स्थलीय मौसम के प्रभाव में आता है।

वायुमंडल में, हॉरिजॉन्टल और वर्टीकल दोनों तरह से यात्रा करने वाली विभिन्न प्रकार की वेव्स होती हैं। एटमोस्फियरिक ग्रैविटी वेव्स (AGW) एक ऐसी ही वर्टीकल तरंग हैं।

वे अधिकतर तब उत्पन्न होते हैं जब कोई एक्सट्रीम वेदर की घटना होती है या अचानक कोई डिस्टर्बेंस होती है जिससे स्थिर हवा का वर्टीकल विस्थापन होता है।

तूफान, हरिकेन, बवंडर, प्रादेशिक भौगोलिक स्थिति और अन्य समान प्राकृतिक घटनाओं में वायुमंडल के निचले स्तरों में एजीडब्ल्यू सहित विभिन्न प्रकार की आवधिक तरंगें भेजने की क्षमता होती है।

एक स्थिर वातावरण गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अर्थात जब वायुमंडल स्थिर होता है, तो ऊपर उठती हवा और वायुमंडल के बीच तापमान का अंतर एक बल उत्पन्न करता है जो इस हवा को उसकी मूल स्थिति में धकेल देता है। हवा लगातार ऊपर उठेगी और नीचे आएगी, जिससे एक लहर जैसा पैटर्न बनेगा।

AGW एक ऐसी वेव है जो वायुमंडल की एक स्थिर परत से होकर गुजरती है, जिसमें ऊपर की ओर बढ़ने वाला क्षेत्र बादल पैटर्न या धारियों के निर्माण के लिए सबसे अनुकूल है। AGW अंतरिक्ष तक पहुँचते हैं, जहां वे स्पेस वेदर में योगदान करते हैं।

मेसोस्फीयर/Mesosphere या मध्य मंडल पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है। मेसोस्फीयर सीधे समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फेयर) के ऊपर और थर्मोस्फीयर के नीचे है।

यह हमारे ग्रह से लगभग 50 से 85 किमी (31 से 53 मील) ऊपर तक फैला हुआ है।

पूरे मेसोस्फीयर में ऊंचाई के साथ तापमान घटता जाता है। पृथ्वी के वायुमंडल में सबसे ठंडा तापमान, लगभग -90° C (-130° F), इस परत की ऊपरी सीमा के पास पाया जाता है।

मेसोस्फीयर और थर्मोस्फीयर के बीच की सीमा को मेसोपॉज़ या मध्य मंडल सीमा (Mesopause) कहा जाता है।

मेसोस्फीयर के निचले भाग में स्ट्रैटोपॉज़ है, मेसोस्फीयर और स्ट्रैटोस्फियर के बीच की सीमा।

वेदर बलून और अन्य विमान मध्यमंडल तक पहुँचने के लिए पर्याप्त ऊँचाई तक नहीं उड़ सकते। उपग्रह मेसोस्फीयर के ऊपर परिक्रमा करते हैं और इस परत की विशेषताओं को सीधे नहीं माप सकते हैं।

ऑरोरा और एयरग्लो यद्यपि समान ऊंचाई पर दिखाई देते हैं, फिर भी ये दोनों अलग-अलग भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं।

रात में दिखाई देने वाले एयरग्लो (या नाइटग्लो) एक प्रकार का केमिलुमिनसेंस है यानी ऊपरी वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और अन्य अणुओं के बीच रासायनिक संपर्क से प्रकाश का उत्सर्जन।

एयरग्लो पृथ्वी के चारों ओर हर समय घटित होती रहती है। हालाँकि, “दिन के एयरग्लो ” की तुलना में अंधेरी पृथ्वी पर “नाईटग्लो ” को पहचानना बहुत आसान है, क्योंकि एयरग्लो सूर्य की तुलना में केवल एक अरबवाँ भाग है।

दूसरी ओर, ऑरोरा सौर ऊर्जा और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के बीच परस्पर इंटरेक्शन से उत्पन्न होता है। चुंबकीय क्षेत्र ऊर्जा को ऊपरी वायुमंडल में प्रवाहित करता है, जहां यह एयरग्लो (मुख्य रूप से ऑक्सीजन और नाइट्रोजन) के समान परमाणुओं के साथ संपर्क करता है।

यही कारण है कि दोनों परिघटनाएं समान रंग उत्पन्न कर सकती हैं। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की गतिशील प्रकृति सौर ऊर्जा को अनियमित तरीकों से स्थानांतरित करती है, जिससे प्रत्येक ऑरोरा परिघटना देखने में यूनिक होती हैं।

error: Content is protected !!