प्राचीन ‘ममंगम व्यापार मेला’ के संरक्षण के लिए थिरुनावाया को विरासत ग्राम घोषित करने के मांग
हाल ही में, कुछ इतिहास शोधकर्ताओं ने केरल सरकार से वर्तमान मलप्पुरम जिले में थिरुनावाया (Thirunavaya) को एक विरासत गांव घोषित करने और क्षेत्र में ऐतिहासिक अवशेषों की रक्षा करने का आग्रह किया। ममंगम (Mamangam) नामक व्यापार मेला का आयोजन इसी क्षेत्र में होता था।
ममंगम 28 दिनों तक चलने वाला एक व्यापार मेला था जो हर 12 साल में एक बार भरथप्पुझा नदी (Bharathappuzha) के तट पर मनाया जाता था, जिसे नीला नदी भी कहा जाता है।
भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ चीन, सीलोन, अरब और यूरोप जैसे स्थानों के व्यापारी पोन्नानी बंदरगाह (Ponnani port) पर जहाज से आते थे और फिर नवमुकुंद मंदिर (Navamukunda temple) के परिसर में आयोजित व्यापार मेले में भाग लेने के लिए थिरुनावाया चले जाते थे।
नवमुकुंद मंदिर को लगभग 5,000 वर्ष पुराना मंदिर कहा जाता है।
पहला ममंगम कब आयोजित किया गया था, इस पर कोई सहमति नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि चेर राजाओं (Chera kings) ने 12 वर्षों में एक बार (duodecennial) आयोजित यह व्यापार महोत्सव/मेला शुरू किया था।
अंतिम चेर शासक ने इसे 12वीं शताब्दी के आसपास वल्लुवाकोनाथिरी/Valluvakonathiri (वल्लुवनाद क्षेत्र के शासकों) को संचालित करने का अधिकार दिया।
कोझिकोड के शासक ज़मोरिन ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए 14 वीं शताब्दी में वल्लुवाकोनाथिरी को हराया और थिरुनावाया सहित कई वल्लुवनदन प्रांतों पर कब्जा करने के बाद ममंगम की अध्यक्षता करने का अधिकार हासिल किया।
वल्लुवाकोनाथिरिस ने ममंगम के दौरान ज़मोरिन की सेना से लड़ने के लिए चेवर्स (chavers) नामक आत्मघाती दस्ते भेजकर हार के साथ-साथ अपने राजकुमारों की हत्याओं का बदला लेने का फैसला किया। लड़ाई के दौरान मारे गए चावरों के शवों को पास के एक कुएं में फेंक दिया गया, जिसे ‘मणिकिनार’ (manikinar) कहा जाता है। कुछ रिकॉर्ड कहते हैं कि घायल योद्धाओं को हाथियों ने कुचल दिया था।
(Source: Indian Express)