गम्बूसिया एफिनिस और गम्बूसिया होलब्रूकी

आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पंजाब में विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने मच्छरों के खतरे को दूर करने के लिए स्थानीय जल स्रोतों में मॉस्क्विटोफिश  (mosquitofish) छोड़ी है, जिसके बारे में स्थानीय लोगों ने शिकायत की है।

गौरतलब है कि 1960 के दशक में, इस तरह के एप्रोच- जिसमें मच्छरों के लार्वा को खाने के लिए फ्रेशवाटर इकोसिस्टम  में मॉस्क्विटोफिश  को छोड़ना शामिल था – कीटनाशकों जैसे रासायनिक समाधानों के विकल्प के रूप में बड़े पैमाने पर उपयोग होने लगे।

मच्छरों के लार्वा को खाने वाले मॉस्क्विटोफिश  की दो प्रजातियाँ थीं, गम्बूसिया एफिनिस (Gambusia affinis) और गम्बूसिया होलब्रूकी (Gambusia holbrooki)।

मॉस्क्विटोफिश की ये प्रजातियाँ अमेरिका में उत्पन्न हुईं लेकिन आज पूरे विश्व में फ़ैल गई हैं। ये अपने हानिकारक पारिस्थितिक प्रभाव के लिए कुख्यात हैं। ये देशी जीवों को विस्थापित कर देते हैं और उनका शिकार कर ली हैं जिससे देशी मछलियाँ, उभयचर और विभिन्न मीठे पानी की कई मछलियां विलुप्त हो गयी हैं।

1928 में, ब्रिटिश शासन के दौरान गंबूसिया को पहली बार भारत में लाया गया था।

हाल ही में भारत में गम्बूसिया प्रजाति के भीतर हैप्लोटाइप (Haplotypes) और जीनोटाइप (genotype) की विविधता की जांच की गई। हैप्लोटाइप डीएनए वेरिएंट हैं जो एक साथ विरासत में मिलने की संभावना है; जीनोटाइप एक जीव की संपूर्ण आनुवंशिक सामग्री है।

शोध से जी. होलब्रुकी और कुछ हद तक जी. एफिनिस के व्यापक वितरण का पता चला। वन्यजीव जीवविज्ञानी और संरक्षक मॉस्क्विटोफिश  को सौ सबसे हानिकारक आक्रामक विदेशी प्रजातियों में से एक मानते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1982 में गंबूसिया को मच्छर नियंत्रण एजेंट के रूप में अनुशंसित करना बंद कर दिया।

2018 में, भारत सरकार के राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने भी गम्बूसिया एफिनिस (Gambusia affinis) और गम्बूसिया होलब्रूकी (Gambusia holbrooki) को इनवेसिव एलियन  प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया। लेकिन भारत में सरकारी और गैर-सरकारी, दोनों संगठनों ने मच्छर-नियंत्रण के लिए इन प्रजातियों को उपयोग करना जारी रखा है।

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