अमेरिका में पहली बार मौत की सजा देने के लिए नाइट्रोजन गैस का इस्तेमाल किया गया
संयुक्त राज्य अमेरिका के अलबामा प्रान्त के एक कैदी केनेथ स्मिथ को 35 वर्ष पहले किये गए अपराध के लिए 25 जनवरी 2024 को नाइट्रोजन गैस यानि नाइट्रोजन हाइपोक्सिया से मृत्यु दंड दे दिया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली बार मृत्यु दंड देने के लिए इस तरीके का उपयोग किया।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर तुर्क ने कहा कि उन्हें फांसी की सजा पर गहरा अफसोस है।
एक बयान के अनुसार, उन्होंने कहा, “नाइट्रोजन गैस द्वारा दम घुटने की यह नई और अप्रयुक्त विधि यातना, या क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार हो सकती है।”
डेथ पेनल्टी इंफॉर्मेशन सेंटर के कार्यकारी निदेशक रॉबिन माहेर ने इसे “मौत की सजा का एक अप्रयुक्त, अप्रमाणित तरीका” कहा।
चार दशकों में यह पहली बार था कि अमेरिका में मौत की सजा देने का एक नया तरीका उपयोग किया गया। इससे पहले अमेरिका में 1982 में पहली बार घातक इंजेक्शन देकर मौत की सजा देने का इस्तेमाल किया गया था।
प्रमुख बिंदु
अमेरिका के लगभग आधे राज्यों में अभी भी मृत्युदंड देने का प्रावधान है। फाँसी देने के तरीके अलग-अलग होते हैं, लेकिन कुछ राज्य अभी भी लटकाकर, फायरिंग दस्ते या बिजली की कुर्सी से झटका देकर देकर मृत्यु दंड दिया जाता है।
हाल के दशकों में, अधिकांश अमेरिकी राज्य मृत्यु दंड देने के लिए घातक यानी लीथल इंजेक्शन पर जुट गए हैं। 1982 में, लीथल इंजेक्शन द्वारा पहली मौत की सजा टेक्सास राज्य ने दी, जिसके बाद धीरे-धीरे पूरे अमेरिका में बिजली की कुर्सी की जगह लीथल इंजेक्शन के ले ली।
लीथल इंजेक्शन में तीन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से प्रत्येक खुराक को ऐसे दिया जाता है कि कैदी जल्दी से जल्दी मर जाए लेकिन हर एक दवा की अपनी खामी है।
नाइट्रोजन हाइपोक्सिया के बारे में
नाइट्रोजन हाइपोक्सिया (Nitrogen hypoxia) मौत की सजा देने का एक ऐसा तरीका है जहां कैदी के चेहरे पर एक श्वासयंत्र मास्क लगाया जाता है, और उनकी सांस लेने वाली हवा को शुद्ध नाइट्रोजन गैस से बदल दिया जाता है।
इससे व्यक्ति को ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे कुछ ही सेकंड में बेहोशी आ जाती है और अंततः चंद मिनटों में उसकी मृत्यु हो जाती है। हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि इसमें कई मिनट लगते हैं।
बता दें कि हम जब सांस लेते हैं तो उसमे नाइट्रोजन का मिश्रण भी होता है जो वास्तव में, रंगहीन और गंधहीन गैस है और वायुमंडल में 78 प्रतिशत यही गैस है। जाहिर है, यह गैस अपने आप में हानिरहित है।
लेकिन मौत की सजा देते समय कैदी को केवल नाइट्रोजन सूंघने के लिए मजबूर किया जाता है और कोई गैस नहीं। यह शरीर को शारीरिक कार्यों को करते रहने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति से वंचित कर देता है जो अंततः मृत्यु का कारण बनता है।