A1 और A2 टाइप्स दूध
भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने 21 अगस्त को खाद्य व्यवसाय संचालकों (FBO) को निर्देश दिया था कि वे अपने दूध और दूध उत्पादों को “A1 और A2 के नाम पर” न बेचें। 26 अगस्त को FSSAI ने इस सलाह को वापस ले लिया।
FSSAI का कहना है कि दूध का A1 और A2 वर्गीकरण प्रोटीन (बीटा कैसिइन/beta casein) की संरचना में अंतर से जुड़ा हुआ है। गाय के दूध में 80 प्रतिशत से अधिक प्रोटीन कैसिइन नामक वर्ग के होते हैं। इनमें से, बीटा-कैसिन दूसरा सबसे बड़ा घटक है।
A1 और A2 मूल रूप से बीटा-कैसिन के दो आनुवंशिक रूप हैं, जो अपने अमीनो एसिड सीक्वेंस में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। A1 में हिस्टिडीन होता है, जो नौ आवश्यक अमीनो एसिड में से एक है जिसका उपयोग शरीर हिस्टामाइन बनाने के लिए करता है। हिस्टामाइन रसायन शरीर को सूजन और एलर्जी के प्रति अपनी रिएक्शन को कण्ट्रोल करने में सक्षम बनाता है।
A2 में प्रोलाइन होता है, जो एक गैर-आवश्यक अमीनो एसिड है जो कोलेजन का एक आवश्यक घटक है और यह जोड़ों और टेंडन के सही तरीके से काम करने के लिए महत्वपूर्ण है।
गाय की अलग-अलग नस्लों के दूध में A1 और A2 बीटा-कैसिन की अलग-अलग मात्रा होती है। अधिकांश दूध में ये दोनों बीटा-कैसिन होते हैं, लेकिन A2 टाइप दूध में केवल दूसरा बीटा-कैसिन होता है।
आम तौर पर, A2 के रूप में ब्रांडेड दूध और दूध से बने उत्पाद प्रीमियम प्राइस यानी अधिक प्राइस पर बेचा जाता है और उन्हें स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
खाद्य सुरक्षा एवं मानक (खाद्य उत्पाद मानक और खाद्य योजक) विनियम, 2011 में निर्दिष्ट दूध के मानकों में A1 और A2 टाइप्स के आधार पर दूध के किसी भी वर्गीकरण का उल्लेख/मान्यता नहीं है।