राज्य सरकारों द्वारा ऋण की गारंटी और संकट

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा गठित एक कार्य समूह ने राज्य सरकारों द्वारा दी गई अपनी एजेंसियों द्वारा लिए जाने वाले ऋण की गारंटी (guarantees extended by State governments) से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए कुछ सिफारिशें कीं। इस कार्य समूह का गठन जुलाई 2022 में किया गया था।

इस कार्य समूह ने ‘गारंटी’ की परिभाषा का विस्तार करने के अलावा (राज्य सरकारों द्वारा) एक्सटेंडेड गारंटी के लिए एक कॉमन रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क और एक कॉमन  गारंटी सीमा निर्धारित की।

इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट (1872) के अनुसार, यह “किसी तीसरे व्यक्ति के डिफ़ॉल्ट के मामले में उसके वादे को पूरा करने, या दायित्व का निर्वहन करने” का एक अनुबंध है।

हालांकि अच्छे समय में गारंटी हानिरहित होती है, लेकिन इससे महत्वपूर्ण वित्तीय रिस्क भी उत्पन्न हो सकते हैं और खराब वित्तीय स्थिति के समय यह राज्य सरकार पर बोझ भी बना सकता है। इसकी वजह से राज्य के खजाने से बड़ी मात्रा में कैश बाहर जा सकता है और ऋण में वृद्धि हो सकती है। साथ ही, रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि गारंटी कुछ घटनाओं से शुरू हो सकती है, लेकिन इसके संभावित लागत/कैश बाहर जाने की मात्रा और समय का अनुमान लगाना अक्सर मुश्किल होता है।

राज्य सरकारों को अक्सर राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों, सहकारी संस्थानों, शहरी स्थानीय निकायों और/या अन्य राज्य-शासित संस्थाओं की ओर से वाणिज्यिक बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान जैसे ऋणदाताओं को गारंटी जारी करने की आवश्यकता होती है। बदले में, संस्थाओं को सरकारों को गारंटी कमीशन या शुल्क का भुगतान करना पड़ता है।

RBI वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गारंटी नामक विकल्प का व्यापक रूप से उपयोग किए जाने का एक कारण यह हो सकता है कि गारंटी के मामले में आमतौर पर अग्रिम यानी अपफ्रंट कैश पेमेंट की आवश्यकता नहीं होती है।  

राज्य की एजेंसी के डिफॉल्ट होने की दशा में  निवेशक/ऋणदाता को भुगतान करना और उसे डिफ़ॉल्ट के जोखिम से बचाना राज्य का कानूनी दायित्व है

जिस यूनिट को गारंटी दी जाती है उसे ‘ऋणदाता’ (creditor) कहा जाता है, डिफ़ॉल्ट यूनिट  जिसकी ओर से गारंटी दी जाती है उसे ‘प्रधान ऋणी’ (principal debtor) कहा जाता है और गारंटी देने वाली यूनिट (यानी राज्य सरकारें) को ‘ज़मानतदार’ (surety) कहा जाता है।

राज्य सरकार की गारंटी को ‘क्षतिपूर्ति’ अनुबंध (indemnity contract) समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए। इंडेमिटी कॉन्ट्रैक्ट में ऋण देने वाली संस्था को वचनदाता (या प्रधान ऋणी) के डिफॉल्ट  से होने वाले नुकसान से बचाता है।

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