तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार है-सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को फैसला सुनाया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला अपने पूर्व पति के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 125 के तहत भरण-पोषण यानी गुजारा भत्ता का दावा करने की हकदार है।
सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत प्रावधान को मौजूदा पर्सनल लॉ का हवाला देकर खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि CrPC की धारा किसी धर्म का उल्लेख नहीं करती। इसलिए इसके प्रावधान सभी धर्मों पर लागू होते हैं।
बता दें कि एक मुस्लिम व्यक्ति ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उसकी पूर्व पत्नी को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत भरण-पोषण मांगने की अनुमति दी गई थी।
याचिकाकर्ता मोहम्मद अब्दुल समद ने 2017 के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को 20,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। अपील पर तेलंगाना उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया। ‘
गौरतलब है कि निराश्रित पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के लिए भरण-पोषण के लिए प्रावधानवाले कानून को CrPC की धारा 125 के तहत संहिताबद्ध किया गया है।
इस प्रावधान की व्याख्या स्पष्ट करती है कि “पत्नी” में वह महिला शामिल है जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया है या उसने तलाक प्राप्त कर लिया है और उसने दोबारा शादी नहीं की है। इसमें महिला के धर्म के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया गया है।