उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पारित हुआ
उत्तराखंड सरकार ने 6 फरवरी को राज्य विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया। यह विधेयक 7 फ़रवरी 2024 को पारित हो गया। इस तरह यह आजादी के बाद किसी भी राज्य में लागू होने वाला पहला समान नागरिक संहिता कानून होगा।
बता दें कि गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है लेकिन इसे पुर्तगाली शासन के समय से हे बरक़रार रखा गया है। राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। इस तरह से गोवा के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार द्वारा नियुक्त पैनल ने समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार किया था।
विधेयक में अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर, उत्तराखंड में सभी नागरिकों के लिए, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत पर एक कॉमन कानून लागू होगा।
अनुसूचित जनजातियों और भारत के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। संविधान के अनुच्छेद 366 व 342 में अनुसूचित जनजातियों को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। इसलिए संभवतः उन्हें इससे बाहर रखा गया है।
अनुसूचित जनजातियों और भारत के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।
संहिता में विवाह और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। संपत्ति में सभी धर्मों की महिलाओं को समान अधिकार दिया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि सभी जीवित बच्चे, पुत्र अथवा पुत्री संपत्ति में बराबर के अधिकारी होंगे।
लिव इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि इस अवधि में पैदा होने वाला बच्चा वैध संतान माना जाएगा। उसे वह सभी अधिकार प्राप्त होंगे, जो वैध संतान को प्राप्त होते हैं।
युगल में से किसी एक पक्ष के नाबालिग होने अथवा विवाहित होने की स्थिति में लिव इन की अनुमति नहीं दी जाएगी। लिव इन संबंध कोई भी पक्ष समाप्त कर सकता है। लिव इन में पंजीकरण न कराने पर अधिकतम तीन माह का कारावास और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रविधान है।